संजय कुमार भगत@छातापुर,सुपौल
छातापुर में भाजपा कार्यकर्ताओं द्वारा गुरुवार को जनसंघ के संस्थापक श्यामा प्रसाद मुखर्जी की पुण्य तिथि बलिदान दिवस के रूप में मनाई गई। जिसमें कार्यकर्ताओं द्वारा उनके छाया चित्र पर पुष्प अर्पित कर उन्हें नमन किया गया। इसके साथ ही उनके सुखद कार्यकाल की विस्तृत रूप से चर्चा किया गया। भाजपा कार्यकर्ता ललितेश्वर पांडेय के आवास परिसर में आयोजित श्यामा प्रसाद मुखर्जी की 127 वीं पुण्यतिथि कार्यक्रम की अध्यक्षता भाजपा मंडल अध्यक्ष सुशील प्रसाद कर्ण ने की।
मौके पर प्रदेश कार्य समिति सदस्य व छातापुर के वरिष्ठ भाजपा नेता शालिग्राम पांडेय ने जनसंघ के संस्थापक श्यामा प्रसाद मुखर्जी की जीवनी को विस्तार से कार्यकर्ताओं के बीच रखते हुए कहा कि वे पार्टी के प्रति समर्पित रहने वाले सच्चे मार्गदर्शक थे। उनके बताएं मार्गो पर चलकर पार्टी को और भी मजबूत करने की जिम्मेवारी हरेक कार्यकर्ताओं की बनती है। उन्होंने कहा कि डॉ. श्यामाप्रसाद मुखर्जी का जन्म 6 जुलाई, 1901 को एक संभ्रांत परिवार में हुआ था। महानता के सभी गुण उन्हें विरासत में मिले थे। उनके पिता आशुतोष बाबू अपने जमाने ख्यात शिक्षाविद् थे। डॉ. मुखर्जी ने 22 वर्ष की आयु में एमए की परीक्षा उत्तीर्ण की तथा उसी वर्ष आपका विवाह भी सुधादेवी से हुआ। उनको दो पुत्र और दो पुत्रियां हुईं। वे 24 वर्ष की आयु में कोलकाता विश्वविद्यालय सीनेट के सदस्य बने। उनका ध्यान गणित की ओर विशेष था। इसके अध्ययन के लिए वे विदेश गए तथा वहां पर लंदन मैथेमेटिकल सोसायटी ने उनको सम्मानित सदस्य बनाया। वहां से लौटने के बाद डॉ. मुखर्जी ने वकालत तथा विश्वविद्यालय की सेवा में कार्यरत हो गए। डॉ. श्यामाप्रसाद मुखर्जी ने कर्मक्षेत्र के रूप में 1939 से राजनीति में भाग लिया और आजीवन इसी में लगे रहे। उन्होंने गांधीजी व कांग्रेस की नीति का विरोध किया, जिससे हिन्दुओं को हानि उठानी पड़ी थी। कहा कि अगस्त 1947 को स्वतंत्र भारत के प्रथम मंत्रिमंडल में एक गैर-कांग्रेसी मंत्री के रूप में उन्होंने वित्त मंत्रालय का काम संभाला था। डॉ. मुखर्जी ने चितरंजन में रेल इंजन का कारखाना, विशाखापट्टनम में जहाज बनाने का कारखाना एवं बिहार में खाद का कारखाने स्थापित करवाए। उनके सहयोग से ही हैदराबाद निजाम को भारत में विलीन होना पड़ा। बताया कि सन 1950 में भारत की दशा दयनीय थी। इससे डॉ. मुखर्जी के मन को गहरा आघात लगा। उनसे यह देखा न गया और भारत सरकार की अहिंसावादी नीति के फलस्वरूप मंत्रिमंडल से त्यागपत्र देकर संसद में विरोधी पक्ष की भूमिका का निर्वाह करने लगे। एक ही देश में दो झंडे और दो निशान भी उनको स्वीकार नहीं थे। अतः कश्मीर का भारत में विलय के लिए डॉ. मुखर्जी ने प्रयत्न प्रारंभ कर दिए। इसके लिए उन्होंने जम्मू की प्रजा परिषद पार्टी के साथ मिलकर आंदोलन छेड़ दिया।कहा कि अटलबिहारी वाजपेयी (तत्कालीन विदेश मंत्री), वैद्य गुरुदत्त, डॉ. बर्मन और टेकचंद आदि को लेकर आपने 8 मई 1953 को जम्मू के लिए कूच किया। सीमा प्रवेश के बाद उनको जम्मू-कश्मीर सरकार द्वारा गिरफ्तार कर लिया गया। 40 दिन तक डॉ. मुखर्जी जेल में बंद रहे और 23 जून 1953 को जेल में उनकी रहस्यमय ढंग से मृत्यु हो गई।
उन्होंने कहा कि अभी केवल जीवन के आधे ही क्षण व्यतीत हो पाए थे कि हमारी भारतीय संस्कृति के नक्षत्र अखिल भारतीय जनसंघ के संस्थापक तथा राजनीति व शिक्षा के क्षेत्र में सुविख्यात डॉ. मुखर्जी की 23 जून, 1953 को मृत्यु की घोषणा की गईं। बंगाल ने कितने ही क्रांतिकारियों को जन्म दिया है, उनमें से एक महान क्रांतिकारी डॉ. श्यामाप्रसाद मुखर्जी थे। बंगाल भूमि से पैदा डॉ. मुखर्जी ने अपनी प्रतिभा से समाज को चमत्कृत कर दिया था।
मंडल अध्यक्ष सुशील प्रसाद ने भी श्यामाप्रसाद मुखर्जी की संघर्षीय जीवन की कहानी कार्यकर्ताओं के बीच रखकर उनके बताये रास्ते पर चलने हेतु सभी को संकल्पित करवाने का कार्य किया।
मौके पर मंडल उपाध्यक्ष ललितेश्वर पांडेय, मंडल महामंत्री अरविंद राय, प्रखण्ड मीडिया प्रभारी राम टहल भगत, चंद्र देव पासवान, पवन हजारी, जय नारायण शर्मा, सुधीर पाठक, शत्रुध्न शर्मा, रोहित कुमार सिंह आदि समेत बड़ी संख्या में पार्टी कार्यकर्ता थे।