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बेबस – लाचार लोग आज भी यही कहते है ,हे कोसी मां अब रहम कर दो सब कुछ उजर गया

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राजेश डेनजील

कोसी टाइम्स @ नवहट्टा, सहरसा.

बिहार का शोक भले ही कोसी को कहा जाता है लेकिन आजतक किसी भी जिम्मेदार ने इस शोक को वरदान बनाने का नही सोच पाया।वादे बाढ़ के पहले भी होते रहे और वादे बाढ़ के समय भी और वादे बाढ़ के बाद भी लेकिन आज भी लोगों की जिंदगी नाव पर या किसी नदी किनारे खुले आसमान में कट रहा है।

कोसी नदी ही हमेशा से कोसी वासियों की जीवन की दशा और दिशा तय करती है. 1984 से लेकर अब तक भले ही सरकार से लेकर सामाजिक लोगों के हाथ मदद के लिए उठे हो.नेता से लेकर सरकार के प्रशासनिक अधिकारी के द्वारा भले ही जिंदगी की राह बदलने की आश्वासन मिला है लेकिन सभी आशाएं और आश्वासन विफल साबित हो रही है. लगातार 30 से 40 वर्षों से स्थानीय सांसद और विधायक के आश्वासन से भले ही पहले से बेहतर जिंदगी और बेहतर इलाका और बेहतर जिंदगी देने की बात दोहराई गई हो लेकिन कड़वा सच तो यह है कि बाढ़ से मुक्ति के लिए आज तक कोई हिम्मत नहीं जुटा पाया है.

ऐसी बाढ़ की स्थिति में भी उन्हें अपने ही दुख और सुख में जीना होता है. बरसात के मौसम शुरू होते कोसी तटबन्ध के सात पंचायत के लोग किसी भारी अनहोनी कि आशंका से भयभीत रहते हैं. बस उनके पास एक ही रास्ता है दिन भर मेहनत मजदूरी कर पेट भरे तो रात भर टकटकी लगाए जागकर समय बिताना एक रास्ता बचता है.

कोसी तटबन्ध के गांव के लोगों के बस एक अपनी कहानी रही है. 6 माह बाढ़ और बरसात की समस्याओं से जूझना तो 6 माह तक बालू की रेत पर दौर लगाना एक कहावत जैसी बन हुई है. परिवर्तन के इस दौर में विकास के लिए डिजिटल इंडिया की शुरुआत की गई . कोसी को भी विकास की प्राथमिकताओं में शामिल किया गया. कोसी नदी पर महिषी प्रखंड के बलुआहा में पुल बना. गाड़ियां भी फर्राटा भरने लगे. लोगों का जिला मुख्यालय से जुड़े रहने का का एक सोच बन गया. प्रखंड मुख्यालय जाने में 45 किलोमीटर तो जिला मुख्यालय जाने में 55 से 60 किलोमीटर तय कर लोग जाने आने लगे. लेकिन विकास कि इन डिजिटल इंडिया की किरणों से दूर तटबंध के भीतर के कई गांव के लोग आज भी खानाबदोश जीवन जीने को विवश बने हुए हैं.

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कोई अपने गांव तक आने जाने के लिए रास्ता ढूंढ रहे हैं तो कोई अपने गांव को ही कोसी नदी में विलीन होने से बचाने को लड़ाई ठान रहे हैं. कोसी के कहर से प्रभावित प्रखंड क्षेत्र का सात पंचायत में एक मात्र ही पंचतयत कैदली जिसे कोसी के रफ्तार ने तो इसके वजूद तक को रौंद डाला. एक तो कोसी नदी में कटाव की कहर से कैदली पंचायत के लोग जीवन को लेकर संघर्षत रहते हैं.

28 अक्टूबर 1984 को पूर्वी तटबन्ध के नौलखा में बांध टूटने से कैदली पंचतयत के पूरा गांव कोसी के मुख्यधारा के चपेट में आया लेकिन कोसी नदी ने उफ़ तक नहीं की. कोसी की मार से त्रस्त कैदली पंचायत के एक बड़ी आबादी छतवन गांव कटकर नदी में विलीन होने पर 2016-17 में ही पलायन कर तटबंध के पूर्वी भाग अपना आशियाना बसा लिया. किसी ने तटबंध के किनारे बसा तो किसी ने तटबन्ध के किनारे स्पर पर बसा तो किसी ने रिस्तेदारो के गावं जाकर आशियाना बसा लिया.

कुछ किसान मजदूर लोग खेती कि लालच से तो कुछ अपनी विवशता के कारण आज भी इधर से उधर भटक कर अपना जीवन यापन कोसी की मुख्यधारा में ही जीने को विवश बने हुए है. जो लगातार नदी की धारा के हिसाब से अपने जीवन का ठौर ठिकाना बदलते रहता है. वैसे तो तटबंध के भीतर सात पंचायत के लोग यातायात की सुविधा से वंचित है लेकिन कैदली पंचायत के लोग के लिए ना तो कोई रास्ता है ना कोई संसाधन होता है.

2016-17 में विस्थापित हुए लोगों को उन्हें गांव की याद भी आती है तो चाह कर भी वे नहीं जा पाते हैं. वैसे तटबंध के भीतर सात पंचायत के 2 दर्जन से अधिक गांवों के लोगों का जीवन भी कुछ इसी तरह बेढंगेपन के तरीके से चलता आ रहा है. प्रखंड क्षेत्र के कैदली पंचायत के असेय,रामपुर, छतवन, शाहपुर पंचायत के भेलाही चाही,हाटी पंचायत की मुरली, कटवार ,हाटी, बरियाही, डरहार पंचायत के महुआ चाही सहित कई अन्य गांव प्रखंड मुख्यालय एवं जिला मुख्यालय से जाने का कोई रास्ता नहीं है.

कोसी के धारा के हिसाब से रास्ता में फेरबदल होता रहता है. साल के 365 दिन यहां केवल एक नाव ही मात्र आवागमन का सुविधा का सहारा होता है. जिसकी सरकारी अस्तर से उपलब्धि नहीं होती है. सिर्फ कागजी रिपोर्ट पर ही नाव तैरते रहती है. जहाँ किसी विधायक से लेकर सांसद व बिहार सरकार के मंत्री औऱ जिले वरीय अधिकारियों का जाना आना भी नाव से ही होता है.

पिछले एक सप्ताह हुए बाढ़ की तबाही से परेशान होकर तटबंध के भीतर के दर्जनों गांव के सैकड़ों परिवार के लोग तटबंध के किनारे प्लास्टिक टांग कर अपना जीवन जीने को विवश बने हुए हैं.इस बेबस लाचार जनता को न बेजेपी के पूर्ण सत्ता वाली सरकार से कोई लाभ हो पाई न पूर्व के समर्थन वाली सरकार काम आई।आज भी दुधमुँहे बच्चे को खिलाने के लिए वो कोसी नदी किनारे बैठ नदी से कहती है हे माँ अब रहम कर दो…..ये दर्द इन बेसहारो को आज भी बस रुलाता है।

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