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मधेपुरा:दर्जनों नलकूप बेकार और नहरें हैं सूखी,कैसे हो चौसा में खेती

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संजय कुमार सुमन

उप सम्पादक@कोसी टाइम्स 

कोसी की प्रलयंकारी बाढ़ ने चौसा के लोगों को जहाँ हर साल तबाह करती रहती है वहीं सूखे की मार और फसलों में दाना नही आने का दंश भी लोगों को झेलना पड़ता है।समय बीतता गया लेकिन यहाँ के किसानों की पीड़ा कम होने का नाम नही ले रही है।करोड़ो रूपये की लागत से लगाये गये दर्जनों नलकूप बेकार हैं और नहरें सूखी है।लिहाजा किसान निजी पम्पसेट से सिंचाई करने को मजबूर है।सरकारी नलकूपों के भरोसे अब खेती करना संभव नही है। सूबे की सरकार कृषि विकास पर बल दे रही है, परंतु सिंचाई के प्रति आज भी उदासीनता बनी हुई है।

25 वर्ष पूर्व राजकीय नलकूपों की जो हालत थी, आज उससे भी बदतर हो चुकी है। इससे किसानों को लाभ ही नहीं मिल पा रहा है। कहीं बिजली की समस्या , तो कहीं संयंत्र की खराबी के चलते यह योजना धरातल पर दम तोड़ चुकी है। आज की तिथि में किसान निजी बोरिंग के सहारे खेती कर रहे हैं। वहीं, छोटे किसानों को 150 रुपये प्रति घंटे की दर से पानी खरीद कर पटवन करने की लाचारी है। मालूम हो कि अधिकतर राजकीय नलकूप छोटी-मोटी गड़बड़ी के चलते ही बंद हैं। कहीं, विद्युत ट्रांसफार्मर खराब है, तो कहीं तार गायब है। कहीं-कहीं मोटर की खराबी भी है। एकाध स्थानों पर यदि राजकीय नलकूप चल भी रहा है, तो वहां के किसानों के लिए नाला की समस्या है। किसानों की शिकायत को नजरअंदाज कर दिया जाता है।

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मालूम हो कि चौसा में सोना उपजाने वाली मिट्टी है, परंतु सिंचाई के अभाव में बेहतर उत्पादन नहीं हो रहा है। महंगे खर्च पर सिंचाई के कारण इस बहियार के किसानों के लिए कृषि लागत वापस होना भी मुश्किल होता है। जिससे किसानों में असंतोष है।

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यहाँ नलकूप और नहरों से पानी बहने के बजाय किसानों की आखों से पानी बह रहा है।किसान अपनी खेत में बड़ी उम्मीद से फसल लगाते है लेकिन फसल सिंचाई के अभाव में बर्बाद हो जाती है।जिसके परिणामस्वरूप अधिकांश कृषक खेती छोड़कर रोजगार के लिए दिल्ली,पंजाब,हरियाणा की ओर पलायन करने को विवश है।कहने को यहाँ नलकूप का जाल बिछाया गया है लेकिन राजकीय नलकूप खुद पानी की एक बूंद के लिये तरस रहा है।

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सरकार द्वारा कृषि क्षेत्र में क्रांति लाने के लिए भागीरथ प्रयास बदस्तूर जारी है।नये-नये तकनीक के आधर पर कृषिगत ढ़ांचे में बदलाव लाने के लिए कृषि विभाग द्वारा किसानों को समय-समय पर प्रशिक्षण दिया जा रहा है।साथ ही कृषि मेला लगाकर नये संयंत्र की खरीद हेतु सरकार किसानों को सब्सिडी भी दिया जा रहा है।ताकि इसके उपयोग से नई पद्धति के द्वारा कृषि क्षेत्र में क्रांति लायी जा सके तथा किसानों को अधिक फसल की पैदावार से लाभ पहुंचायी जा सके।खेतों में उन्नत पैदावार के लिए सिंचाई की अच्छी ब्यवस्था निहायत ही जरूरी है।सरकार द्वारा इस क्षेत्र में एक से एक नीतियों को अमलीजामा पहनाया गया लेकिन चौसा प्रखंड में सरकार के इस नेक नीति को पंख नही लग पाया।कारण इस प्रखंड में जितनी भी सरकारी स्तर पर सिंचाई की ब्यवस्था है सबके सब लचर स्थिति में हैं। जिसमें से राजकीय नलकूप एक है।
जानकारी हो कि चौसा मुख्य रूप से कृषि प्रधान प्रखंड है जहाँ सरकारी स्तर पर मुख्य रूप से नहर एवं राजकीय नलकूप ही सिंचाई के लिए प्रमुख साधन है।प्रखंड के लौवालगान पूर्वी,लौवालगान पश्चिमी,अरजपुर पूर्वी,अरजपूर पश्चिमी,चौसा पूर्वी,चौसा पश्चिमी,घोषई आदि पंचायतों में दशकों पूर्व लगाये गये जो सही देख रेख के अभाव में धराशायी हो गया।नतीजतन किसानों को सिंचाई के लिए दूसरों तरीकों पर निर्भर रहना पड़ता है।पम्पसेट के सहारे खेती करने वाले किसानों को अधिक खर्च होने के कारण आर्थिक कठिनाईयों से गुजरना पड़ता है।

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गौरतलब है कि धाराशायी हो रहे राजकीय नलकूप को पुनःचालू कराने के लिए सरकार द्वारा अब तक कोई ठोस पहल नहीं किया जा सका है।ना ही बंद पड़े नलकूप का लगे सामानों की सुरक्षा के लिए कोई ब्यवस्था की गई है। मशीन में लगे किमती लोहे का सामान चोरों के हांथ लगने लगे है और करोड़ो के उपस्कर खुले आसमान के नीचे जंग ख रहे है।श्रीविधि आदि तकनीक का प्रचार प्रसार बड़े पैमाने पर किया जा रहा है।मगर आज भी प्रखंड खेत्र के लाखों कुषकों के समक्ष पटवन की समस्या मुंह बांये खड़ी है।दिनों-दिन महंगी हो रही डीजल कं कारण पंपसेट के सहारे पटवन करना लघु एवं सीमांत किसानों के लिये कठिन हो रहा है।
किसान अभय यादव,पैक्स अध्यक्ष सुनील यादव,योगेश कुमार बंटी,रंजीत कुमार,मुखिया प्रतिनिधि सचिन कुमार बंटी कहते हैं कि पंपसेट नही रहता तो खेती करना मुश्किल हो जाता।सरकारी नलकूप के भरोसे खेती किसी भी परिस्थति में संभव नही दिख रही है।उन्होंने सरकार एवं प्रशासन से सिंचाई ब्यवस्था को चुस्त दुरूस्त करने के लिए नलकूपों को अविलंब चालू करने की मांग की है।

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