गौरव ठाकुर
कोसी टाइम्स@उदाकिशुनगंज,मधेपुरा
मधेपुरा-सहरसा और पूर्णिया को जोड़ने वाली सड़क एनएच-107 खूनी सड़क बन चुकी है.सड़क के विषय को लेकर कई जनप्रतिनिधि ओर प्रशासन ने कई पात्र लिखे लेकिन एनएच के अधिकारियों के द्वारा अब तक कोई सुध नहीं ली गई।
हम बात मधेपुरा के एनएच-107 की कर रहे हैं खूनी सड़क पर जो एक बार जाता है वो दूसरी बार जाने की हिम्मत नहीं जुटा पाता। हिचकोले खाते, धूल फांकते, किचड़ उड़ाते, उदाकिशुनगंज से महज 30 -35 किलोमीटर दूर मधेपुरा जाने में आपको दो से तीन घंटा का समय लग सकता है और किसी जगह की दूरी कितने समय में तय कर पाएंगे इसका अंदाजा आप लगा सकते हैं।
नेताओं से है शर्मशार
सड़क के खराब होने के कारण ही के लोग यहां आने से डरते हैं।गलती से आने के लिए किसी गाड़ी में बैठे तो मधेपुरा की धरती को कोशते,उदासीनता की हदों को पार कर जाने की कहानी कहते पहुचते हैं।असल मे बात ये है कि नेताओं को राजनीति के लिए एक मुद्दा भी तो होनी चाहिये।नहीं तो राजनीति को रोटी वो कहाँ सकेंगे।जिस किसी को भी जनता ने वोट देकर आगे किया वही इस सड़क के मामले को लेकर और पीछे चले गए।मधेपुरा की बोली भली जनता कहाँ जाए ये बात अब समझ से पड़े है।
लोगों की माने तो कई वर्षों से मधेपुरा जिले की जनता अच्छे सड़क को मानो तरस से गये हैं।जबकि मधेपुरा की धरती से निकल कर कई बड़े दिग्गज नेता बने और आज वही धरती शर्मशार है।सबने अपने जमीर को मारकर सिर्फ राजनीति की रोटियाँ शेकनी शुरू कर दी।यदि सड़क का अच्छे से मरम्मतिकरण भी हो जाता तो लोग खुश होते और कहते “कुछ तो हुआ” लेकिन ऐसा सोचना भी अपने अंतरआत्मा तो ठेंस पहुंचाने के बराबर है।जहां की जनता ने किसी गांव के आम इंसान को अपने सर की पगड़ी दे दी आज वही पगड़ी खुद से उछालते नज़र आते हैं और आ रहें हैं।
जब हमारे यहां कोई सड़क हादसे का शिकार होता है ओर किसी अस्पताल से रेफर किया जाता है तो बहुमूल्य जीवन सड़क गड्ढे के एक झटके से शून्य पर आ जाता है और जीवन सड़क को कोशते हुए वही दम तोड़ देती है।जब हमारी माँ-बहन को प्रशव पीड़ा होती है और जब बेहतर इलाज के लिए उन्हें इसी सड़क से गुजरना पड़ता है तो दिमाग मे मौत की घंटी पहले से बजने लगती है डर-भय से ही आधी जिंदगी दम तोड़ती नज़र आती है।आखिर कब तक ऐसा होता रहेगा।कब तक हम गरीब -मजदूर -किसान नेता के मीठे बोल का शिकार होते रहेंगे।केंद्र सरकार और राज्य सरकार भले ही सड़कों के मुद्दे को लेकर ढिंढोरा पिटती हो लेकिन जमीनी स्तर की सच्चाई कुछ और ही बयान करती नज़र आती है।
खैर इतना कुछ होने के वाबजूद जो सड़क का जो कार्य प्रारंभ किया गया है वो भी एक मजाक सा बनकर रह गया है।सालों बित जाने के बाद भी अब तक सड़क का नाप जोख ही हो रहा है।कभी किसी जगह पे कंपनी के द्वारा जे सी बी लगा कर मिट्टी खोदा जाता रहा है तो कभी सड़क को साइड का मिट्टी काटा जा रहा है। गाड़ियों वाले से बात करने पर वो कहते हैं सड़क की स्थिति ऐसी है कि हमलोगों को हमेशा मौत से निकालने वाले भगवान प्रभु ही हैं। 5 दिनों में गाड़ी की मर्र्मत करवानी पड़ती है।जान जाने का हमेशा डर बना रहता है।मालूम हो कि एक महीने में लगभग 2-4 लोगों की मौत निश्चित है।
मिली जानकारी के मुताबिक वर्ष 2016 में केंद्रीय भूतल परिवहन मंत्री नितिन गड़करी ने देशभर में इन मौतों का आंकड़ा कम करने के लिए 726 दुर्घटना संभावित इलाके पहचान कर उन्हें दुरुस्त करने के लिए 11 हजार करोड़ की भारी भरकम राशि खर्च करने का ऐलान किया था। कुछ महीने पहले उन्होंने एक बार फिर कहा कि 2020 तक सड़क हादसों में होने वाली मौतों के आकड़ों में कमी आयेगी, क्योंकि इस ओर हमारा विभाग तेजी से काम कर रहा है। सड़क यातायात एवं राजमार्ग मंत्रालय के शोध के अनुसार 77.1% मौतों में ड्राइवर की गलती रही, जबकि अन्य में पीड़ित की गलती रही। इसके अलावा 70 प्रतिशत दुर्घटना में आमने सामने की टक्कर हुई।
Comments are closed.