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पप्पू जी ऊन्नै ,मैडम ईन्नै….जनता जाये तो जाये कैन्नै ? (छठी कड़ी)

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अन्ना यादव
राजनीतिक विश्लेषक @ कोसी टाइम्स.

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कोसी के राजनीतिक पटल पर रोज नयी नयी इबादतें लिखी जा रही है.जैसे जैसे बिहार विधानसभा चुनाव की तारीखें नजदीक आती जा रही है,वैसे वैसे नये समीकरण बन रहे है,पुराने राजनीतिक संबंध टूट रहे हैं.नये रिश्तों की तलाश की जा रही है.कोसी के साथ साथ सीमांचल की राजनीति को भी जोड़ दें तो तस्वीर और भी रोचक व रोमांचक बनती जा रही है.कट्टरपंथी विचारधारा के औवेसी के बिहार विधानसभा की राजनीति में कूदने के साथ ही हैदराबादी जुबानी जहर वाली बिरयानी की गंध से महागठबंधन की नींद उड़ रही है.इसे महागठबंधन के एम वाई समीकरण में सेंध की दूसरी कोशिश के तौर पर देखा जा रहा है.बीजेपी पहली कोशिश के तौर पर यादवों को महागठबंधन से अलग लाने की कोशिश लोकसभा चुनाव के समय से ही कर रही है.औवेसी ने अपनी लांचिंग के लिए सीमांचल के किशनगंज को चुना क्योंकि यहां 70 फीसदी मुस्लिम आबादी है.अब सवाल उठता है कि औवेसी किसका किसका नुकसान करेंगे ? तो इसका जवाब है सबसे ज्यादा नीला यानि नीतिश-लालू (महागठबंधन) ,उसके बाद तारिक अनवर व पप्पू यादव का नंबर आता है.कोसी व सीमांचल में यादवों के साथ साथ मुस्लिमों में भी लालू के बाद सबसे ज्यादा पकड़ पप्पू की ही है.

महागठबंधन के साथ ही साथ एनडीए में भी घमासान मचा हुआ है.महाभारत हर जगह चल रहा है.बीजेपी पहले पप्पू को पुचकार रही थी.लेकिन बदले हुए समीकरण में अब बीजेपी पप्पू को घास नहीं डाल रही है.शायद बीजेपी के कैलकुलेशन में पप्पू फिट नहीं बैठ रहे हों.बीजेपी पहले पप्पू को आगे कर महागठबंधन के गढ़ कोसी व सीमांचल में सेंधमारी की तैयारी में लगी हुयी थी.पर अब औवेसी के उतरने से बीजेपी को इसकी जरूरत नहीं लग रही होगी.एनडीए की सोच जो भी पर इतना तो जरूर है कि कोसी व सीमांचल में पप्पू व तारिक को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है.ये खुद जीत नहीं सकते हैं तो किसी की जीत की राह के आड़े आ सकते हैं.इन्हीं सब समीकरणों को आपस में जोड़ देने से कोसी बेल्ट की राजनीति काफी रोचक हो गयी है…और मतदान होने तक राजनीति का रोमांच लगातार बढ़ता ही जायेगा!…कल पढ़िए इस खास चुनावी पेशकश की अगली कड़ी

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