अन्ना यादव
इलेक्शन स्पेशल @ कोसी टाइम्स.
एक फिल्मी गाने के बोल तो आपके जेहन में जिंदा होंगे ही कि हाय!मोरा जियरा डरने लगा…धक-धक करने लगा!कुछ ऐसी ही हालत कोसी क्षेत्र की राजनीति से जुड़े एक राजनीतिक परिवार के समर्थकों की हो रही है.जी हां!शिवहर विधानसभा सीट पर जेल में बंद शिवहर के पूर्व सांसद आनंद मोहन की पत्नी लवली आनंद अपने बेटे चेतन आनंद के साथ जीतनराम मांझी की ‘हम’ के दम पर अपनी डूबी हुयी राजनीतिक नैया को फिर से किनारे लगाने के लिए शिवहर के खेत-खलिहानों की ताबड़तोड़ खाक छान रही हैं.लेकिन बदली हुयी राजनीतिक परिस्थितियां कुछ ऐसी है कि लवली के समर्थकों का करेजा धक धक कर रहा है.2010 में अगर लवली ने थोड़ी राजनीतिक समझदारी दिखायी होती तो कम से कम विधायकी कर रही होती.उस समय मुख्यमंत्री नीतिश कुमार खुद चलकर आनंद मोहन की मां से समर्थन मांगने के बहाने मिलने नवगछिया आये थे,लेकिन पब्लिक को पता है कि आज की राजनीति ‘लो और दो’ के दौर से गुजर रही है.परदे के पीछे इस मुलाकात की असल वजह थी लवली आनंद के हाथ में तीर सौंपना ताकि कोसी क्षेत्र में राजपूत समुदाय के वोट को पूरी तरह से जदयू व तत्कालीन एनडीए के पक्ष में किया जा सके.उस समय हार जीत की फिफ्टी फिफ्टी संभावनाओं के बीच झूल रहे नीतिश तब हर उस दर पर दस्तक दे रहे थे जो उनकी जीत को पक्का कर लालूराज की दोबारा वापसी को रोक सके.लेकिन जेल के भीतर बंद आनंद मोहन बाहर की हवा को परख नहीं सके और बीबी तक बात पहुंचायी कि नीतिश के झांसे में न आना,सोनिया जी के हाथ का साथ ले लेना…और इसी फैसले ने लवली को राजनीतिक बियाबान में ढ़केल दिया.
अब थोड़ा बैकफ्लैश में चलते हैं.बिहार की राजनीति में बाहुबलियों का वर्चस्व हमेशा से ही रहा है. पहले अपने आपराधिक छवि से लोगों के मन में दहशत पैदा करने वाले ये बाहुबली बाद में समाजसेवा के नाम पर राजनीति से जुड़ जाते हैं.बिहार की राजनीति में हमेशा से ही बाहुबलियों का दबदबा रहा है.शहाबुद्दीन,सूरजभान,राजन तिवारी,पप्पू यादव,आनंद मोहन,अनंत सिंह,सुनील पांडे वगैरह वगैरह…और कितने नाम गिनायें!सहरसा विधानसभा से लहटन चौधरी जैसे कॉंग्रेसी दिग्गज को हराकर लवली के पति बाहुबली आनंद मोहन ने 90 के दशक में देशभर में सुर्खियां बटोरी थी.यह बाहुबली फिलहाल गोपालगंज के डीएम जी.कृष्णैया की हत्या के मामले में पिछले 8 सालों से सलाखों के पीछे हैं.जिलाधिकारी की हत्या के मामले में हाई कोर्ट ने उन्हें पहले मौत की सजा सुनाई थी,जिसे बाद में उम्रकैद में बदल दिया गया.अपनी उम्रकैद की सजा को उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी,जिसे अस्वीकार किया जा चुका है.कलेक्टर कृष्णैया हत्याकांड की हकीकत जो भी हो!पर इतना तो तय है कि यही एक घटना आनंद मोहन की राजनीतिक महत्वाकांक्षा को हमेशा हमेशा के लिए लील गया….अब अगले बुधवार पढ़िए इस खास चुनावी पेशकश की अगली कड़ी
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