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शिक्षा मंत्री जी सुनिए :भारत में कैसे हो शैक्षणिक सुधार ?

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अनुपम सिंह
स्पेशल डेस्क @ कोसी टाइम्स.

अपने बचपन के स्कूल से निकले हुए कई साल बीत गये हैं…बचपन में अपने लिए प्रधान अध्यापक के नाम पत्र लिखता था. देश की दयनीय शिक्षा व्यवस्था में सुधार की खातिर देश के प्रधान सेवक के नाम एक पाती पहले ही लिख चुका हूं …अब उसी की एक कड़ी के रूप में एक पत्र देश की शिक्षा मंत्री के नाम लिख रहा हूं..शायद मेरी पाती पढ़ कर सोये हुए सरकारी तंत्र के नींद की बाती कुछ जले तो भारत देश हमारा कुछ आगे चले……!

श्रीमति स्मृति ईरानी
(केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री)
केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्रालय,
शास्त्री भवन, C- विंग, डॉ॰ राजेन्द्र प्रसाद रोड,
नई दिल्ली – 110001

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विषय :- नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2015 के संबंध में।
माननीया,
उपर्युक्त विषयान्तर्गत लेख है कि वर्तमान राष्ट्रीय शिक्षा नीति के आधार पर मेरी समझ में छात्र-छात्राओं को आने वाली कठिनाइयों से मैं आपको अवगत कराना चाहता हूँ, यदि आपको आवश्यक लगे तो “नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2015” लागू करने वक्त इसको ध्यान में रखा जा सकता है:-
जहाँ तक मैं समझता हूँ समूचे देश में एक जैसी शिक्षा पद्धति होनी चाहिए, एक जैसे पाठ्यक्रम हों ताकि गाँव के बच्चे हों या शहर के कोई अंतर न हो (यहाँ मैं ये स्पष्ट कर दूँ कि मेरा शिक्षा के माध्यम यथा भाषा से कोई लेना-देना नहीं है बल्कि मैं सिर्फ ये निवेदन करना चाहता हूँ कि गाँव के स्कूल/कालेज में गणित अथवा भौतिकी आदि पढ़ रहे बच्चे को भी वही पढ़ने को मिले जो अच्छे संस्थानों से पढ़ रहे बच्चों को मिलते हों ) ।
उक्त सुधार से समूचे देश में बच्चों के मूल्यांकन में एकरूपता आएगी साथ ही भविष्य में भी वैश्विक दृष्टिकोण के कारण अगर शिक्षा पद्धति / पाठ्यक्रम में आवश्यक सुधार होता है तो उसका लाभ न सिर्फ अच्छे संस्थान/अगरे राज्य के बच्चों बल्कि सभी बच्चों को मिलेगा।
विभिन्न प्रकार के शिक्षा संबंधी बोर्ड के बजाय राष्ट्रीय स्तर पर एक बोर्ड हो तथा उसे इस प्रकार विकेंद्रीकृत किया जाय जिससे उसके संचालन में कोई समस्या नहीं आए।
उक्त परिवर्तन से देश में CBSE, NIOS और विभिन्न राज्यों के बोर्ड आदि के बजाय राष्ट्रीय स्तर पर एक बोर्ड हो जाएंगे जिससे छात्रों को कहीं भी शिक्षा ग्रहण में कठिनाई नहीं होगी और किसी भी बोर्ड के पिछड़ने का भय नहीं रहेगा।
प्राथमिक विद्यालय से लेकर उच्च शिक्षा तक के लिए शिक्षकों के चयन का पैमाना राष्ट्रीय स्तर का होना चाहिए क्योंकि शिक्षक ही किसी भी राष्ट्र के भविष्य की तस्वीर लिखते हैं और जब शिक्षक ही योग्य नहीं हों तो देश के भविष्य के बारे में कल्पना की जा सकती है। जैसा बीते कुछ वर्षों में भारत के कुछ राज्यों में किया गया है कि जो आवेदन/नाम आदि लिखने के काबिल नहीं थे वे आज शिक्षक हैं (बिन्दु क्रमांक-5 देखें) ।
शिक्षकों का चयन बहुत ही अहम है भारत में “सर्व शिक्षा अभियान” लागू होने के बाद अधिकांश राज्यों ने ऐसे शिक्षकों की नियुक्ति की है जिससे देश न सिर्फ 10-15 वर्ष बल्कि 60-65 वर्ष पीछे जाने के कगार पर है, उक्त सुधार से यह मुल्क फिर से पटरियों पर आ सकता है।
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वर्तमान परिवेश में शिक्षा के स्तर में बहुत तेजी से परिवर्तन हो रहे हैं, ऐसे में समय की माँग के अनुसार अगर हमने अपने शिक्षा पद्धति में आवश्यक सुधार नहीं किये तो जिनके पास पैसे हैं उनके बच्चे तो पब्लिक स्कूलों अथवा अन्य देशी/विदेशी संस्थानों की मदद से आगे बढ़ ही जाएंगे लेकिन हमारी लगभग 70% युवाओं (कर्णधार) के भविष्य उन सरकारी स्कूलों के भरोसे रहेगा जहाँ न अच्छे शिक्षक हैं और न ही अन्य आवश्यक सुविधाएं जिसका खामियाजा न सिर्फ उन बच्चों को झेलना पड़ेगा बल्कि यह देश उसकी कीमत चुका नहीं पाएगा। सरकारी विद्यालय के बारे में मैं बता दूँ कि केंद्रीय विद्यालय / नवोदय विद्यालय सरीखे कुछ विद्यालय को छोड़ दिया जाय तो बाँकी सभी की स्थिति बहुत दैयनीय है।
वर्तमान समय में अँग्रेजी के महत्व को झुठलाया नहीं जा सकता एक उदाहरण के रूप में मैं बताना चाहूँगा कि मैं एक शासकीय प्राथमिक विद्यालय से पढ़ा हूँ जहाँ पाँचवीं कक्षा में a for apple प्रारंभ किया गया था, अंतर सोचा जा सकता है।
आज कुछ राज्यों द्वारा केंद्र / विश्व बैंक / अन्य संस्थाओं से आर्थिक सहयोग पाने हेतु आंकड़ों का खेल खेला जा रहा है कि हमारे राज्य में 40 बच्चे पर एक शिक्षक हैं तो कोई 30 बच्चे पर एक शिक्षक की बात करते हैं, शिक्षकों की संख्या की खानापूर्ति से ज्यादा जरूरी योग्य शिक्षकों की नियुक्ति है क्योंकि मैं समझता हूँ कि आंकड़ों के बजाय गुणप्रद शिक्षा ज्यादा जरूरी है। अच्छी शिक्षा के लिए आवश्यक मसलों पर ध्यान देने की जरूरत है जैसे योग्य शिक्षक , जरूरी उपकरण और विद्यालय भवन आदि।
मेरे समझ से शिक्षा एक ऐसा क्षेत्र है जिससे किसी भी सरकार को खिलवाड़ नहीं करना चाहिए। शिक्षा में न ही केंद्र/राज्य के अधिकार क्षेत्र की बात होनी चाहिए बल्कि बच्चों का भविष्य कैसे बेहतर हो इसके लिए राजनीति से ऊपर उठकर राष्ट्र हित के लिए काम करना चाहिए क्योंकि बच्चों का भविष्य सर्वोपरि हो वो ज्यादा जरूरी है न कि ये केंद्रीय सूची, राज्य सूची अथवा समवर्ती सूची से संबन्धित है।

जहाँ तक मैं समझता हूँ उपर्युक्त कुछ सुधार से गाँव हो या शहर, सरकारी हो या निजी, गरीब हो या अमीर सबों का शिक्षा संबंधी विकास एकरूपता से होगा जो हमारे देश को शिक्षा के क्षेत्र में वैश्विक मंच पर एक बार फिर से मजबूती के साथ प्रतिष्ठापित करेगा।
धन्यवाद।
भवदीय

अनुपम कुमार सिंह

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