संजय कुमार सुमन
“उत्साह से उत्साह बढ़े, लेकर सबको साथ।
मन उमंग से रहे भरा, बँधे हाथ में हाथ॥”
दुनिया के सारे सफलतम लोगों ने अपनी जिंदगी में कभी-न-कभी असफलता का कड़वा घूंट जरूर पिया है। जब कभी हम उनकी सफलता की कहानियां सुनते हैं, उनकी शुरुआती असफलता के किस्से भी सुनने को मिलते हैं।जिंदगी में कभी हताश और निराश नहीं होना चाहिए। उत्साहित जीवन शैली अपनाने से ही जिंदगी का सफर आसानी से कट जाता है। दिल में मिठास और होठों पर मुस्कान रखें। न खुद उदास रहें और न दूसरों को रहने दें। क्या होता है उत्साह, हर वो आदमी जीवन में सफल जरूर हुआ है जिसके अंदर उत्साह होता है। किसी भी कार्य को करने के लिए जब तक हमारे अंदर excitement नहीं होगा तब तक हम से वह कार्य सही से और time पर नहीं हो पाएगा और ना ही कोई उससे ज्यादा कुछ सीख पायेगा।ये ऊर्जा आपको कही से नहीं मिलेगी। ये किसी बाजार में नहीं मिलेगी। ये तो आपको हमको अपने अंदर दिखानी पड़ती है। या यू कहे पैदा करनी पड़ती है। अगर आपने अपने अंदर उत्साह, नई उमंग अपने अंदर भर ली तो फिर आप सक्सेस हो गए।उत्साह है, तो जीवन है। उत्साह नहीं, तो जीवन निरर्थक है। इसके बिना जीवन जीना आसान नहीं। उत्साह जिंदगी को सार्थक बनाता है। मन, मस्तिष्क एवं शरीर को स्वस्थ बनाए रखने के लिए भी उत्साह जरूरी है। इसकी कमी से मस्तिष्क और शरीर अस्वस्थ होने लगता है।
रामकृष्ण परमहंस जी ने कहा कि हमेशा इस बात पर ध्यान दो कि तुम अब तक कितना चल पाए, बजाय इसके कि अभी और कितना चलना बाकी है। जो कुछ पाया है, हमेशा उसे गिनो; जो हासिल न हो सका उसे नहीं।
आपने बाज को जरुर देखा होगा। बाज जैसी नजर, बाज जैसी नजर होने का सीधा मतलब focus is key to success से है। मतलब आप जब भी कोई कार्य करें तो आपका सारा फोकस उसी कार्य पर होना चाहिए फिर आपको सफलता मिलने के chance अधिक रहेंगे।फोकस का मतलब होता है जब आप किसी कार्य को करें तो सारा का सारा ध्यान उस कार्य पर रखे। सारा का सारा फोकस मतलब यह भी नहीं कि आप अपने सभी कार्य छोड़कर एक ही कार्य में लगे रहे।इसका मतलब यह है कि आप जब भी किसी work को करे अपना पूरा फोकस उस कार्य पर रखें तब तक दूसरा कार्य न करें जब वो complete हो जाये उसके बाद करे।
किसी समूह या जनसमूह में एक ऐसे व्यक्ति को आपने भी जरुर देखा होगा कि जिसमें सारे माहौल को उत्साह में भर देने की क्षमता हो। इस तरह के लोग जैसे ही प्रवेश करते हैं, हर किसी में प्राण फूँक देते हैं और इनके विदा होते ही लोग पिचके हुए गुब्बारे की तरह महसूस करने लगते हैं। ऐसे लोग सकारात्मक विचारों, ऊर्जा और उच्च स्तरीय उमंग से भरपूर होते हैं। उनकी उपस्थिति में बड़ी से बड़ी समस्या भी या तो मामूली लगने लगती है या फिर गायब हो जाती है। ऐसे लोग अपने समूचे समूह में उत्साह भरते रहते हैं और उत्साह से भरपूर समूह में पहाड़ को भी डिगा देने की क्षमता होती है।आपको एक कहानी सुनाता हूँ-
एक समय की बात है जब श्रावस्ती नगर के एक छोटे से गाँव में अमरसेन नामक व्यक्ति रहता था। अमरसेन बड़ा होशियार था, उसके चार पुत्र थे जिनके विवाह हो चुके थे और सब अपना जीवन जैसे-तैसे निर्वाह कर रहे थे परन्तु समय के साथ-साथ अब अमरसेन वृद्ध हो चला था। पत्नी के स्वर्गवास के बाद उसने सोचा कि अब तक के संग्रहित धन और बची हुई संपत्ती का उत्तराधिकारी किसे बनाया जाये ? ये निर्णय लेने के लिए उसने चारो बेटों को उनकी पत्नियों के साथ बुलाया और एक-एक करके गेहूं के पाँच दानें दिए और कहा कि मै तीरथ पर जा रहा हूँ और चार साल बाद लौटूंगा और जो भी इन दानों की सही हिफाजत करके मुझे लौटाएगा तिजोरी की चाबियाँ और मेरी सारी संपत्ती उसे ही मिलेगी, इतना कहकर अमरसेन वहां से चला गया।पहले बहु-बेटे ने सोचा बुड्ढा सठिया गया है चार साल तक कौन याद रखता है हम तो बड़े हैं तो धन पर पहला हक़ हमारा ही है। ऐसा सोचकर उन्होंने गेहूं के दानें फेक दिये।दूसरे ने सोचा की संभालना तो मुश्किल है यदि हम इन्हे खा लें तो शायद उनको अच्छा लगे और लौटने के बाद हमें आशीर्वाद देदे और कहे की तुम्हारा मंगल इसी में छुपा था और सारी संपत्ती हमारी हो जाएगी यह सोचकर उन्होंने वो पाँच दानें खा लिये।तीसरे ने सोचा हम रोज पूजा पाठ तो करते ही हैं और अपने मंदिर में जैसे ठाकुरजी को सँभालते हैं, वैसे ही ये गेहूं भी संभाल लेंगे और उनके आने के बाद लौटा देंगे।चौथे बहु- बेटे ने समझदारी से सोचा और पाचों दानो को एक एक कर जमीन में बो दिया और देखते-देखते वे पौधे बड़े हो गये और कुछ गेहूं ऊग आये फिर उन्होंने उन्हें भी बो दिया इस तरह हर वर्ष गेहूं की बढ़ोतरी होती गई पाँच दानें पाँच बोरी, पच्चीस बोरी,और पचासों बोरियों में बदल गए।
चार साल बाद जब अमरसेन वापस आया तो सबकी कहानी सुनी और जब वो चौथे बहु-बेटों के पास गया तो बेटा बोला , ” पिताजी , आपने जो पांच दाने दिए थे अब वे गेंहूँ की पचास बोरियों में बदल चुके हैं, हमने उन्हें संभल कर गोदाम में रख दिया है, उनपर आप ही का हक़ है। ” यह देख अमरसेन ने फ़ौरन तिजोरी की चाबियाँ सबसे छोटे बहु-बेटे को सौंप दी और कहा, तुम ही लोग मेरी संपत्ति के असल हक़दार हो।
इस कहानी से हमें शिक्षा मिलती है कि मिली हुई जिम्मेदारी को अच्छी तरह से निभाना चाहिए और मौजूद संसाधनो, चाहे वो कितने कम ही क्यों न हों, का सही उपयोग करना चाहिए। गेंहूँ के पांच दाने एक प्रतीक हैं , जो समझाते हैं कि कैसे छोटी से छोटी शुरआत करके उसे एक बड़ा रूप दिया जा सकता है।
यह तो स्वाभाविक है कि जब आप अच्छा महसूस करते हैं तो मुस्कराते हैं। इससे अंदर की खुशी जाहिर होती है। यह बरकरार रहे, इसके लिए उत्साह का होना जरूरी है। अपना उद्धार स्वयं करें इसके लिए अपने आपको जानना व पहचानना है।
उत्साह हमारे ही अंदर है। उसे प्राप्त करने का तरीका है स्व को जानना, स्व का चिंतन-मनन करना। समस्याओं का चिंतन न करके उनके समाधान के तरीके अपनाने चाहिए। इंसान के जीवन में उत्साह है तो समस्याएं अपने आप हल हो जाती हैं। फिर वहां निराशा के लिए जगह नहीं रहती।रामायण में एक उक्ति आई है:-
जस करहिं सो तस फल चाखा।”