अन्ना यादव,कोसी टाइम्स. बी. एन. मंडल विश्वविद्यालय परिसर…..सुबह का वक़्त,चारों तरफ गणतंत्र दिवस की गंध और कुलपति के इंतजार में छात्रों के साथ मौजूद शिक्षकगण .हम भी ताली बजानेवाली भीड़ का हिस्सा बन जाते हैं. कुलपति आते हैं,पहले से तैनात मुहंलगे प्रोफेसरों की टोली द्वारा उनकों झंडोत्तोलन स्थल पर पहुँचाया जाता है (काश ! ये प्रोफेसर इतनी ही मुस्तैदी कॉलेजों में छात्रों को पढ़ाने में भी दिखाते तो बी. एन. मंडल विवि. की बात ही कुछ और होती). खैर, कुलपति महोदय द्वारा तिरंगे की रस्सी में तान पड़ते ही स्वतंत्रता का प्रतीक हमारा तिरंगा आसमान में लहलहा उठता है और राष्ट्रगान की धुनों से पूरा वातावरण गणतंत्रमय हो जाता है.
झंडोत्तोलन के बाद की रस्मों के बाद कुलपति के संबोधन की बारी आती है. पहले गणतंत्रता और स्वतंत्रता की घुट्टी पिलायी गयी, जैसे हर वर्ष हमें यह खुराक मिलती है. फिर धीरे-धीरे कुलपति जी के बोल बदलने लगते हैं…..और भीड़ के साथ-साथ हम भी मधेपुरा में न होकर, किसी बड़े महानगर में होने का अनुभव करने लगते हैं…….इंटरनेशनल स्टेडियम, हवाई अड्डा,बिहार के बाहर के प्रोफेसरों की टोली बी.एन.एम.यू. में क्लास लेगी. कुलपति किसी धुरंधर संत की तरह कथा कहते जा रहे हैं और उपस्थित भीड़ भक्तगण की तरह ताली पर ताली बजाते जा रही है…हमारे जेहन में बरबरस क्रांतिवीर फिल्म का दृश्य उभर आता है,जैसे नाना पाटेकर कह रहा हो……बजाओ ताली.
मैं सोच में पड़ जाता हूँ….प्रधानमंत्री मोदी की महत्वाकांक्षी बुलेट ट्रेन मेरे दिमाग में सरपट दौड़ने लगती है…जैसे बुलेट ट्रेन से हम आम लोगों (केजरीवाल वाले नहीं ) को फायदा न के बराबर है,उसी तरह से अभी हमें मधेपुरा में इंटरनेशनल स्टेडियम की जरुरत नहीं है..इंडोर गेम में जिले का नाम रौशन करने वाले खिलाडियों को हम एक अलग छत तो अभी तक उपलब्ध करा नहीं पाए हैं, और सीधे इंटरनेशनल स्टेडियम …..वह भी तब जब बी.एन.एम.यू. का सत्र अन्य विवि की तुलना में काफी विलंब चल रहा हो.विडम्बना तो देखिये इस यूनिवर्सिटी की…..कि यहाँ खेलों का वार्षिक कैलेंडर घोषित हो जाता है,पर परीक्षाओं के वार्षिक कैलेंडर का कोई पता नही चलता.मेरे बगल में खड़े एक सज्जन के मुहं से अनायास ही निकल पड़ता है “एकरा ते हरोत बांस के करची से कूटे के जरुरत छे..बीप-बीप,पढाई-लिखाई साढ़े बाईस और 600 करोडी बजट के सरकार से हेल्लो फरमाईश”.मैं भी उनकी बातों से इत्तेफाक रखता हूं ,बीप-बीप को छोड़कर. अच्छा होता अगर कुलपति महोदय शिलालेख की बजाय गरीब छात्रों के दिलों पर अपना नाम छोड़ पाते ;लेकिन शायद नेताओं की ये बीमारी अब छुआछुत बनती जा रही है. बाहरी प्रोफ़ेसर तो बाद में भी आ जायेंगे ,पहले निठल्ले बैठ कर वेतन भोगने वाले अपने बी.एन.एम.यू. के विद्वानों को तो छात्रों को पढ़ाने के लिए तैयार कीजिए…..कुलपति महोदय के बोलने की गति अब मंद हो रही है,बहुत देर से खड़े-खड़े शायद पैर दर्द करने लगा हो…..अंततः उनका संबोधन समाप्त होता है,प्रोफेसरों की टोली फिर उनके अगल-बगल चलने लगती है.,धीरे-धीरे गणतंत्रता की गंध लिए भीड़ भी छटने लगती है.हम भी बी.एन.एम.यू.परिसर से निकल रहे है….आसमान में हमारी आन,बान और शान का प्रतीक तिरंगा अभी भी सीना ताने ऐसे मुस्कुरा रहा है ,जैसे कह रहा हो कि…इन सोच समझ वालों को भी थोड़ी नादानी दे मौला…….जय हिन्द, जय भारत..!
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