मधेपुरा ब्यूरो/संस्कृत या देववाणी अथवा सुर-भारती दुनिया की सबसे पुरानी उल्लिखित भाषाओं में से एक है। यह भारत के समृद्ध अतीत की भाषा है। इसमें हमारा समस्त ज्ञान-विज्ञान संरक्षित है।
यह बात काशी हिंदू विश्वविद्यालय, वाराणसी के संस्कृत विभाग में असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. ठाकुर शिवलोचन शांडिल्य ने कही। वे शनिवार को तीस दिवसीय (18 मई से 16 जून तक) उच्चस्तरीय राष्ट्रीय कार्यशाला में व्याख्यान दे रहे थे। संस्कृति मंत्रालय, भारत सरकार के अंतर्गत संचालित इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र की राष्ट्रीय पांडुलिपि मिशन योजना के तहत यह कार्यशाला केंद्रीय पुस्तकालय, भूपेंद्र नारायण मंडल विश्वविद्यालय, मधेपुरा में आयोजित हो रही है।
केवल पूजा-पाठ की भाषा नहीं है संस्कृत
उन्होंने कहा कि संस्कृत केवल पूजा-पाठ की भाषा नहीं है। यह ज्ञान-विज्ञान की भाषा है। हमारा अधिकांश प्राचीन ज्ञान-विज्ञान संस्कृत भाषा में निबद्ध एवं संरक्षित है। इसमें हम साहित्य-दर्शन, अर्थशास्त्र, वाणिज्य, भौतिकी, रसायनशास्त्र, चिकित्साशास्त्र आदि से संबंधित ज्ञान संग्रहित हैं।
आज भी सटीक है संस्कृत
उन्होंने बताया कि संस्कृत एक अत्यंत प्राचीन भाषा है। इसके बावजूद यह आज भी सटीक है। इसकी संरचना अत्यंत ही औपचारिक है। कम्प्यूटर को सरल कोडिंग लैंग्वेज में लाने में संस्कृत भाषा महत्वपूर्ण है। इसका व्याकरण बिल्कुल गणितीय है। साथ ही भाषा की सभी प्रविधियों पर वैज्ञानिक चिंतन किया गया है।उन्होंने बताया कि संस्कृत एक वैज्ञानिक भाषा है। इसमें पौराणिकता एवं आधुनिकता दोनों है।
मील का पत्थर साबित होगी यह कार्यशाला
दूसरे विशेषज्ञ वक्ता मैथिली विभाग के पूर्व अध्यक्ष डॉ. रंजीत कुमार सिंह ने कहा कि देश के प्रचीन ज्ञान-विज्ञान का संरक्षण एवं संवर्धन एक महत्वपूर्ण कार्य है। इस दिशा में आजादी के अमृत महोत्सव वर्ष में पांडुलिपि विज्ञान एवं लिपि विज्ञान पर कार्यशाला का आयोजन सराहनीय है।
उन्होंने कहा कि आज हमें अपने कोसी क्षेत्र की पांडुलिपियों को खोजने और उसका संरक्षण करने की जरूरत है। इस दिशा में यह कार्यशाला मील का पत्थर साबित होगी।
प्राचीन ज्ञान को संरक्षित करना चुनौतीपूर्ण है
इस अवसर पर निदेशक (शै.) डॉ. एम. आई. रहमान ने कहा कि आज भी हम बहुत सारी प्राचीन लिपियों को पढ़ नहीं पाए हैं। ऐसे में प्राचीन ज्ञान-विज्ञान को संरक्षित करना हमारे लिए एक चुनौती है।
व्याख्यानोपरांत दोनों विशेषज्ञ वक्ताओं को अंगवस्त्रम्, पुष्पगुच्छ एवं स्मृतिचिह्न से सम्मानित किया गया।
इस अवसर पर विज्ञान संकायाध्यक्ष डॉ. नवीन कुमार, विकास पदाधिकारी डॉ. ललन प्रसाद अद्री, केंद्रीय पुस्तकालय के प्रोफेसर इंचार्ज डॉ. अशोक कुमार, उप कुलसचिव (शै.) डॉ. सुधांशु शेखर, शोधार्थी सारंग तनय, पृथ्वीराज यदुवंशी, सिड्डु कुमार, डॉ. राजीव रंजन, डॉ. सोनम सिंह (उत्तर प्रदेश), नीरज कुमार सिंह (दरभंगा), बालकृष्ण कुमार सिंह, जयप्रकाश भारती, त्रिलोकनाथ झा, सौरभ कुमार चौहान, ब्यूटी कुमारी, जयश्री, खुशबू, डेजी, लूसी कुमारी, श्वेता कुमारी, इशानी, मधु कुमारी, प्रियंका, निधि कपिलदेव यादव, अरविंद विश्वास, अमोल यादव, नताशा राज, रश्मि आदि उपस्थित थे।
रविवार को होगा क्षेत्र भ्रमण
उप कुलसचिव (शै.) डॉ. सुधांशु शेखर ने बताया कि रविवार को क्षेत्र भ्रमण का कार्यक्रम निर्धारित है, जिसके तहत प्रतिभागियों को सहरसा जिले में अवस्थित कंदाहा सूर्य मंदिर एवं मटेश्वर स्थान का भ्रमण कराया जाएगा। सोमवार को टी. पी. कालेज, मधेपुरा में हिंदी विभागाध्यक्ष डॉ. वीणा कुमारी, मंगलवार को भूपेंद्र नारायण यादव मधेपुरी एवं मुरारी कुमार (दरभंगा) और बुधवार को हिंदी विभागाध्यक्ष डॉ. उषा सिन्हा का व्याख्यान निर्धारित है।
उन्होंने बताया कि गुरुवार को कुलपति डॉ. आर. के. पी. रमण की अध्यक्षता में समापन समारोह का आयोजन किया जाएगा। इस अवसर पर जयप्रकाश विश्वविद्यालय, छपरा के कुलपति डॉ. फारूक अली मुख्य अतिथि होंगे। प्रति कुलपति डॉ. आभा सिंह विशिष्ट अतिथि और वित्तीय परामर्शी नरेंद्र प्रसाद सिन्हा एवं कुलसचिव डॉ. मिहिर कुमार ठाकुर सम्मानित अतिथि होंगे।
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