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भारतीय दर्शन में है सभी समस्याओं का समाधान : प्रो. डॉ. ज्ञानंजय द्विवेदी

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मधेपुरा/ मानव जीवन मूल्यों पर आधारित है। हम मूल्यों के कारण ही जीवित हैं और मूल्यों पर ही पूरी धरती टिकी है। बिना मूल्य के जीवन की कल्पना नहीं की जा सकती है। यह बात बीएनएमयू, मधेपुरा के पूर्व कुलपति प्रो. (डॉ.) ज्ञानंजय द्विवेदी ने कही।

वे मंगलवार को मूल्य शिक्षा : आवश्यकता एवं चुनौतियां विषयक राष्ट्रीय सेमिनार के समापन समारोह में मुख्य अतिथि के रूप में बोल रहे थे। कार्यक्रम का आयोजन शिक्षाशास्त्र विभाग, ठाकुर प्रसाद महाविद्यालय, मधेपुरा के तत्वावधान में किया गया। उन्होंने कहा कि मूल्य शिक्षा की आत्मा है। मूल्य है, तो शिक्षा में जीवन है अन्यथा शिक्षा निष्प्राण है। उन्होंने कहा कि भारतीय दर्शन में धर्म, अर्थ, काम एवं मोक्ष को पुरूषार्थ माना गया है। इन चार पुरुषार्थों में जीवन के सभी लौकिक एवं पारलौकिक मूल्य मौजूद हैं।

उन्होंने कहा कि आज नैतिक मूल्यों में गिरावट ही दुनिया की सबसे बड़ी समस्या है। इस समस्या का समाधान भारतीय दर्शन एवं भारतीय शिक्षा-पद्धति में निहित है। भारतीय दर्शन को अपनाकर हम सभी समस्याओं का समाधान कर सकते हैं।

तिलकामांझी भागलपुर विश्वविद्यालय, भागलपुर में गांधी विचार विभाग के अध्यक्ष प्रो. (डॉ.) विजय कुमार ने कहा कि शिक्षा का उद्देश्य व्यक्ति के शरीर, मन एवं आत्मा तीनों का विकास है। यदि इन तीनों पहलुओं का विकास होगा, तभी सही मायने में हमारा विकास होगा। इतिहास में हमेशा मूल्य बदलते रहते हैं। आलग-आलग जगहों में नैतिकता के मापदंड भी अलग-अलग हैं। लेकिन सबसे मुख्य सवाल है कि हमारे जीवन का क्या उद्देश्य है ? हमें जाना कहां है ?

डॉ. पी. एन. पियूष ने कहा कि अनुशासन हमारे जीवन का एक विद्यार्थी अनुशासन को जीवन में अपनाएं। शिक्षकों के ऊपर बड़ी चुनौती है। विशिष्ट अतिथि सामाजिक विज्ञान संकायाध्यक्ष प्रो. (डॉ.) राजकुमार सिंह ने कहा कि शिक्षा में मूल्यों को आभाव हो गया है। इसलिए आज की शिक्षा वास्तव में शिक्षा नहीं, बल्कि सूचना मात्र है। उन्होंने कहा कि आज हम स्वयं नैतिक नहीं हैं, इसलिए हमारे द्वारा दिए गए उपदेश का कोई असर नहीं पड़ता है। आज ऐनकेन प्रकारेण सफलता पाने वाले समाज में सम्मानित हो रहे हैं। नैतिकवान लोग हाशिए पर धकेले जा रहे हैं। इस तरह समाज में आदर्शों की कमी हो गई है।

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विशिष्ट अतिथि मानविकी संकायाध्यक्ष प्रो. (डॉ.) उषा सिन्हा ने कहा कि वैदिक काल से लेकर आज तक शिक्षा-व्यवस्था में काफी परिवर्तन आया है। पहले हम गुरु के यहां जाकर शिक्षा प्राप्त करते थे। फिर शिक्षक स्वयं विद्यार्थियों के बीच जाने लगे। बाद में दोनों एक विद्यालय में मिलने लगे। इससे शिक्षा में गिरावट आई है। पहले शिक्षा ज्ञान प्राप्ति का माध्यम था। आज इसका उद्देश्य धनोपार्जन हो गया है।

डॉ. परमानंद यादव ने कहा कि हमें अधिकारों की मांग के साथ-साथ कर्तव्यों का भी पालन करना चाहिए। विपरित परिस्थितियों में भी हम सत्य का रास्ता नहीं छोड़ें। प्रज्ञा प्रसाद ने कहा कि शिक्षा अपने आपमें एक मूल्य है। लेकिन दुख की बात है कि आज सकारात्मक मूल्यों का अभाव है और नकारात्मक मूल्य हमारे जीवन में आ गए हैं।

के. पी. कालेज, मुरलीगंज के प्रधानाचार्य डॉ. जवाहर पासवान ने कहा कि शिक्षा का लाभ समाज एवं राष्ट्र तक पहुंचाने की जरूरत है। कार्यक्रम के प्रारंभ में अतिथियों का अंगवस्त्रम् एवं पुष्प गुच्छ से स्वागत किया गया। राष्ट्रगान जन-गण-मन के सामूहिक गायन के साथ कार्यक्रम संपन्न होने की घोषणा की गई। कार्यक्रम की अध्यक्षता प्रधानाचार्य डॉ. के. पी. यादव ने की। संचालन संयोजक सह दर्शनशास्त्र विभागाध्यक्ष डॉ. सुधांशु शेखर ने और धन्यवाद ज्ञापन आयोजन सचिव सह विभागाध्यक्ष अध्यक्ष डॉ. जावेद ने किया।

इस अवसर पर डॉ. मो. तनवीर यूनुस (हजारीबाग), डॉ. अफाक हासमी (दरभंगा), डॉ. सुमंत कुमार, रंजन कुमार, सारंग तनय, माधव कुमार सहित दर्जनों शिक्षक, शोधार्थी एवं विद्यार्थी उपस्थित थे।

कार्यक्रम के आयोजन में अमित कुमार, डॉ. आशुतोष, विनीत राज, डॉ. विकास आनंद, डॉ. कुंदन कुमार सिंह, डॉ. ललन कुमार, डॉ. अमित आनंद, नदीम अहमद अंसारी, कुंजन लाल पटेल, डॉ. मिथिलेश कुमार, डॉ. आसिफ अली, स्नेहा कुमारी, सुप्रिता कुमारी, डॉ. अशोक कुमार अकेला, विवेकानंद, सुप्रिया सुमन, रानी, गौरव कुमार सिंह, नयन रंजन, मनीष कुमार, सुदिश कुमार, दीपक कुमार आदि ने सहयोग किया।

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