रंजन सिन्हा । पटना.
भोजपुरी के पुराने दौर को वापस लाने के लिए प्रयासरत और वर्तमान में लीक से हटकर फिल्म बनाने के लिए रजनीश मिश्रा आगे आये हैं। उन्होंने अपनी पहली फिल्म ‘मेहंदी लगा के रखना’ से ही संकेत दे दिया कि उनकी सोच मौजूदा दौर में बन रही भोजपुरी फिल्मों से इतर है। उन्होंने इस फिल्म से ये साबित कर दिया कि अगर भोजपुरी फिल्मों में भोजपुरिया परिवेश पर कहानी बुनी जाय, तो वह हिट होती है और दर्शकों द्वारा सराही भी जाती है। उनका मानना भी है कि फिल्मों की कहानी हमारे अपने परिवेश और परिवार से निकलनी चाहिए।
संगीतकार से निर्देशन के क्षेत्र में कदम रखने वाले रजनीश मिश्रा ने भोजपुरिया इंडस्ट्री को ये संदेश दिया है कि भोजपुरी संस्कृति और सामाजिक परिवेश पर आधारित फिल्मों का दौर अभी खतम नहीं हुआ है। बस ऐसी फिल्में बनाने की लोगों में इच्छाशक्ति की कमी आई है। रजनीश इस बार महापर्व छठ पर एक और पारिवारिक व मनोरंजक फिल्म लेकर आ रहे हैं, जो है – ‘मैं सेहरा बांध के आऊंगा’। वो भी रजनीश मिश्रा स्टाइल में, जिसमें हास्य और विनोद से भरा सिक्वेंस दर्शकों को हंसते – हंसाते रुला देगी।
दिल में संगीत को रखने वाले रजनीश अभी देवभूमि काशी में फिल्म ‘डमरू’ की शूटिंग कर रहे है। यह फिल्म भी परिवार और परिवेश के अनुकूल है। इस बारे में रजनीश मिश्रा कहते हैं कि डमरू सही रूप से इंसान और भगवान के बीच के संबंधों को उजागर करता है। यह जरूरी नहीं है कि भक्त ही भगवान के लिए व्याकुल रहे, कभी कभी भगवान भी भक्त के लिए व्याकुल हो जाते हैं। फिल्म मेकिंग के बारे में रजनीश कहते हैं कि अगर मैं म्यूजिक डायरेक्टर के काम से आगे बढ़ कर डायरेक्शन के लिये आया हूं, तो मेरी पहली ज़िम्मेदारी ये बनती है कि मैं वो करूं जिसको होता देखना चाहता था. ऐसी फिल्में बनाउं, जिससे लोगों का मनोरंजन तो हो ही साथ में मुझे भी लगे कि मैंने कुछ बनाया है।
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