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मोदी-शाह के मैजिक के बाद भी राज्यों में सिकुड़ते साम्राज्य को बचाना भाजपा के सामने बड़ी चुनौती

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दीपक कुमार त्यागी
स्वतंत्र पत्रकार व स्तंभकार

भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को सम्पूर्ण विश्व में एक बहुत ही शानदार ढंग से धाराप्रवाह बोलने वाले अच्छे वक्ता के रूप में जाना जाता है। वह विश्व के जिस भी कोने में जाकर जनता का संबोधन करते हैं, उस जगह की जनता मंत्रमुग्ध होकर उनकी मुरीद होकर उनसे दिल से जुड़ जाती है और उनकी हाँ में हाँ मिलाने लगती है। लेकिन इस बार झारखंड राज्य की जनता ने विधानसभा चुनावों में उनकी हाँ में हाँ मिलाने के बजाए उन्हें ही ना कह कर भाजपा के रणनीतिकारों व देश के दिग्गज चुनावी पंडितों को आश्चर्यचकित कर दिया है।

झारखंड की जनता ने सारे देश को व सभी राजनैतिक दलों को यह साफ़ संदेश दे दिया है कि वो अब अच्छे लच्छेदार धाराप्रवाह भाषणों व भावनात्मक मुद्दों पर नहीं बल्कि जनभावनाओं के अनुरूप होने वाले जनहित के कार्यों व सरकार के अच्छे-बुरे कामों का आकलन करके वोट करेगी। इन चुनावों में मोदी-शाह की जोड़ी की जबरदस्त मेहनत के बाद भी चुनाव परिणामों में भाजपा को महागठबंधन के हाथों करारी शिकस्त हाथ लगी हैं। भाजपा ने झारखंड विधानसभा चुनाव में 9 रैलियां प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी व 9 रैलियां गृहमंत्री अमित शाह की करवाई थी साथ ही भाजपा के स्टार प्रचारकों की पूरी फोज ने चुनाव जीतने के लिए जबरदस्त ताकत झोंक रखी थी। प्रचार में इन सभी नेताओं ने स्थानीय मुद्दों की जगह राष्ट्रीय मुद्दों को प्रमुखता से उठाकर भावनात्मक रूप से भुनाने का प्रयास किया था। जिसको झारखंड की जनता ने अस्वीकार कर दिया, भाजपा नेताओं ने राम मंदिर और कश्मीर से धारा 370 हटाने के अपने फैसले को पूरे चुनाव प्रचार में जोर-शोर से उठाया था, स्वयं प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी व गृहमंत्री अमित शाह ने अपने चुनावी भाषणों में राष्ट्रीय मुद्दों को जोर-शोर से उठाया था।

भाजपा के शीर्ष नेतृत्व को उम्मीद थी कि कश्मीर से धारा 370 हटाने और राम मंदिर निर्माण जैसे बड़े मुद्दों का उसे विधानसभा चुनाव में जबरदस्त फायदा होगा, लेकिन जनता ने इसके विपरीत भाजपा को झारखंड की सत्ता से बाहर कर विपक्ष में बैठने का रास्ता दिखा दिया। राज्य में पार्टी बहुमत के आंकड़े से काफी पीछे रह गयी। अबकी बार 65 पार का नारा देने वाली पार्टी भाजपा महज़ 25 सीटों पर सिमट कर रह गयी। झारखंड की जनता ने भाजपा के सभी राष्ट्रीय स्तर के मुद्दों को सिरे से नकार कर स्पष्ट संदेश दे दिया है कि राज्यों के विधानसभा चुनावों में राष्ट्रीय मुद्दें कम चलेंगे, भविष्य में विधानसभा के चुनावों में राजनैतिक दलों को राष्ट्रीय मुद्दों के साथ-साथ स्थानीय मुद्दों को भी तरजीह देनी होगी तब ही राज्यों के चुनावों में विजय हासिल होगी।

झारखंड के चुनाव परिणामों ने देश में भविष्य की राजनैतिक दिशा व दशा की स्थिति को भी काफी हद तक साफ कर दिया है। एकबार फिर राज्यों में गठबंधन सरकारों का दौर ही कामयाब हो गया है। साथ ही राज्य की जन अदालत ने यह भी संदेश दे दिया है कि अगर भाजपा सरकार ने देश में व्याप्त आर्थिक मंदी को दूर करने व आमजनमानस की रोजमर्रा की रोजीरोटी की समस्याओं का समाधान जल्द नहीं किया, तो वह दिन दूर नहीं है जब कांग्रेस मुक्त भारत का नारा देने वाली भाजपा का साम्राज्य वर्ष 2017 तक जिस तेजी के साथ फैला था उस ही तेजी के साथ घटकर चंद राज्यों में ही सिमट कर सीमित रह जायेगा। भाजपा नेतृत्व को समय रहते ही जन भावनाओं व देशहित में लिए जाने वाले सख्त फैसलों के बीच बेहतर तालमेल करना होगा, अपने बड़बोले नेताओं पर लगाम लगानी होगी। साथ ही पार्टी के शीर्ष नेताओं को अंहकार से मुक्त होकर बिखरते एनडीए के सभी सहयोगियों को सम्मान देते हुए एकजुट रखना होगा।

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“भाजपा के रणनीतिकारों को देश के आमजनमानस की पीढ़ा को समझना होगा, उन्हें समझना होगा कि उसके लिए देश की एकता अखंडता, अमनचैन, आपसी भाईचारे के साथ रोजीरोटी रोजगार महत्वपूर्ण है ना कि अन्य ज्वंलत मुद्दें महत्वपूर्ण हैं।”

भाजपा को अपने तेजी के साथ घटते साम्राज्य को बचाने के लिए अब सत्ता के महलों से बाहर आकर, धरातल की वास्तुस्थिति को समझते हुए उसका विश्लेषण करके तत्काल आत्मचिंतन कर भविष्य के लिए कारगर रणनीति वाली रूपरेखा बनानी होगी। तब ही भविष्य में मोदी-शाह की जोड़ी की लोकप्रियता व मैजिक के जलवे को देश की जनता के बीच बरकरार रखा जा सकता है । भाजपा के कुछ नेताओं को समझना होगा कि वो अब सत्ता में है, इसलिए अब विपक्षी नेताओं की तरह उग्र व्यवहार करना बंद करें। क्योंकि विपक्ष में रहकर आग लगाना बहुत आसान कार्य है, लेकिन सत्ता में रह कर आग ना लगने देना बहुत कठिन कार्य है।

झारखंड राज्य में आये चुनाव परिणाम सत्ता पक्ष भाजपा के लिए एकदम अप्रत्याशित हैं, ये चुनाव परिणाम सत्ताधारी दल भाजपा व मोदी-शाह की जोड़ी की लोकप्रियता के लिए बहुत बड़ा झटका है। विचारणीय प्रश्न यह है कि भाजपा के द्वारा जिस तरह से झारखंड में अपने चुनाव प्रचार को हिन्दू-मुसलमान, मंदिर-मस्जिद, आर्टिकल 370, राम मंदिर, एनआरसी व कैब आदि भावनात्मक व ज्वंलत मसलों के आसपास रखा गया, उसके बाद भी इन भावनात्मक मुद्दों का चुनावों में भाजपा को कोई राजनैतिक लाभ हासिल नहीं हुआ है यह भाजपा नेतृत्व के लिए सोचनीय है। कहीं ना कहीं इन विधानसभा चुनाव परिणामों पर देश में व्याप्त आर्थिक मंदी, रोजीरोटी व रोजगार संकट के मसलों पर केंद्र सरकार से जनता की नाराजगी सत्ता पक्ष भाजपा को भारी पड़ी है। जिस तरह से पिछले एक वर्ष में भाजपा के साम्राज्य से राजस्थान, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र के बाद झारखंड बाहर हुए है, वह राज्यों में भाजपा के घटते तेजी से प्रभाव व जनता की नाराजगी को दर्शाता है। हालांकि कुछ समय पहले ही हरियाणा में भी भाजपा को सरकार बनाने के लिए काफी मशक्कत करनी पड़ी थी। हरियाणा में तो गृहमंत्री अमित शाह की चाणक्य नीति से भाजपा को सरकार बनाने में सफलता मिल गई थी, लेकिन महाराष्ट्र में शिवसेना के एनडीए से बाहर होने के बाद भी जुगाड़ से देवेंद्र फडणवीस को मुख्यमंत्री की शपथ दिलाने के बाद भी भाजपा सरकार बचाने के लिए बहुमत का बंदोबस्त नहीं कर पायी थी।

सबसे बड़ी खास बात यह है कि आज भी राष्ट्रीय स्तर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जैसा लोकप्रिय व कद्दावर नेता भाजपा के पास मौजूद है। पार्टी के पास आज भी गृहमंत्री अमित शाह के रूप में कुशल राजनैतिक रणनीतिकार मौजूद है। लेकिन उसके बाद भी हाल के राज्यों के चुनाव परिणामों पर नजर डालें तो विधानसभा चुनाव में स्थानीय मुद्दों की अनदेखी के चलते व भाजपा के दूसरी पंक्ति के दिग्गज नेताओं के सत्ता के अंहकार में चूर होकर अनापशनाप बडबोलेपन वाले बयानों के चलते, कहीं ना कहीं भाजपा को मोदी-शाह की जोड़ी का अब वो फायदा नहीं मिल पा रहा है जो राज्यों के चुनावों में 2017 तक मिलता था और 2019 के लोकसभा चुनावों अप्रत्याशित रूप से मिला था।

जिस तरह से मोदी-शाह की जोड़ी ने वर्ष 2014 के बाद वर्ष 2019 के लोकसभा चुनावों में भी बड़ी जीत हासिल करके सभी को चौंका दिया था। उसके बाद देश के सभी राजनैतिक विश्लेषकों को भाजपा की प्रचंड जीत को देखकर लगता था कि पूरे देश में भाजपा की स्थिति अब काफी मजबूत है वह राज्यों के चुनावों में पहले से बहुत बेहतर करेगी। लेकिन हकीकत में रोजीरोटी पर बढ़ते जनआक्रोश के चलते राज्यों में धरातल पर अब ऐसी स्थिति नहीं हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पहले कार्यकाल के अंतिम समय से लेकर अब तक अगर भाजपा ने यूपी जैसे बड़े राज्यों में प्रचंड जीत भी हासिल की तो पंजाब, मध्य प्रदेश, राजस्थान, महाराष्ट्र जैसे बड़े राज्य खो भी दिए है। इसके साथ-साथ छत्तीसगढ़ और अब झारखंड जैसा छोटा राज्य भी भाजपा के पास नहीं रहा। लेकिन सोचने वाली बात यह है कि देश में राज्यों की सत्ता हासिल करने में अब क्यों नहीं चल रहा मोदी-शाह की जोड़ी का मैजिक।

लोग जब लोकसभा चुनावों के लिए वोटिंग करने जाते हैं तो उनके मन में पूरे देश के विकास के लिए राष्ट्रीय स्तर के मुद्दे होते हैं साथ ही मतदाता सभी राजनैतिक विकल्पों को ध्यान में रखते हुए मतदान करता है। लेकिन वही मतदाता विधानसभा चुनावों में राज्यस्तरीय मुद्दों से प्रभावित होता है वो उनके ही आधार पर राज्य सरकार का चयन करता है। वर्ष 2019 के लोकसभा चुनावों में मिले जनता के अपार प्रेम के बूते प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी देश के सबसे लोकप्रिय नेता के रूप में शीर्ष स्थान पर काबिज हैं। लेकिन इसका मतलब ये नहीं है कि लोकसभा चुनावों में नरेंद्र मोदी का चयन करने वाली देश की सम्मानित जनता राज्यों के विधानसभा चुनावों में भी भाजपा का चयन करने के लिए बाध्य है।
क्योंकि राष्ट्रीय स्तर पर देश की जनता को लगता है कि देश में फिलहाल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का कोई विकल्प मौजूद नहीं है। लेकिन राज्य स्तर के चुनावों में अब जनता को लगने लगा है कि भाजपा के राज्यस्तरीय नेतृत्व का अच्छा विकल्प अन्य राजनैतिक दलों में मौजूद है और जनता अब उन विकल्पों को चुनने का कार्य हर एक राज्य में करने लगी है जो कि भाजपा के साम्राज्य के लिए खतरें की घंटी है।

हमारे देश की लोकतांत्रिक व्यवस्था की यह खूबसूरती है कि अलग-अलग चुनावों में जनता के बीच अलग-अलग मुद्दे हावी होते हैं। हर राज्य में छोटे-छोटे कई ऐसे मुद्दे हैं जिन्हें देखकर लोग वोट करते हैं। ऐसे में अगर भविष्य में भी राज्यों के चुनावों में भी भाजपा की राज्य सरकारें अपने काम की जगह व स्थानीय मुद्दों की जगह सिर्फ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नाम पर ही वोट हासिल करने की कोशिश करेगी तो उसके लिए चुनावों में जीतना मुश्किल ही होगा। इसलिए राज्यों में विजय प्राप्त करने के लिए व अपने सिकुड़ते साम्राज्य को बचाने के लिए भाजपा के रणनीतिकारों को स्थानीय मुद्दों व सहयोगियों को तरजीह देनी ही होगी, तब ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी व गृहमंत्री अमित शाह की जोड़ी का मैजिक जनता के बीच बरकरार रह सकता है।

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