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वीआइपी प्रमुख मुकेश सहनी के लिए आसान नहीं बिहार की राजनीति की राह

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 पटना/ बिहार की राजनीति में तामझाम से एंट्री करने वाली विकासशील इंसान पार्टी (वीआइपी) को एक बार फिर बड़ा झटका मिला है। वीआइपी संस्थापक मुकेश सहनी ने भाजपा को बागी तेवर दिखाते हुए विधान परिषद की सात सीटों पर उम्मीदवार तो जरूर दिए, लेकिन उनकी पार्टी एक भी सीट पर जीत नहीं हासिल कर पाई। विधान परिषद के स्थानीय निकाय कोटे की 24 सीटों पर हुए चुनाव में सहनी ने सहनी ने भाजपा से तीन सीटें मांगी थी, लेकिन जब बात नहीं बनी तो उन्होंने परिषद की सभी 24 सीटों पर चुनाव लड़ने का ऐलान किया। लेकिन, बाद में उन्होंने सिर्फ सात सीट समस्तीपुर, बेगूसराय-खगड़िया, सहरसा-मधेपुरा-सुपौल, सारण, रोहतास-कैमूर, पूर्णिया-अररिया-किशनगंज व दरभंगा में उम्मीदवार उतारे। भाजपा के सहयोगी होने के बाद भी उन्होंने 15 सीटों पर जदयू तथा दो सीटों पर निर्दलीय उम्मीदवारों को समर्थन दे दिया।

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राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि सहनी को राजनीति में जल्दबाजी से बचते हुए अपनी शैली में स्थिरता लानी होगी। भाजपा से दल गठन, दल गठन से महागठबंधन और महागठबंधन से भाजपा में वापसी बेहद जल्दबाजी वाले फैसले हैं। किसी एक जगह टिककर लंबी पारी खेलने की आदत डालनी होगी। इस डाल से उस डाल पर कूद उनके लिए घातक हो सकती है।

यही नहीं राजनीति में जमे रहने के लिए उन्हें पहले अपना आधार वोट खड़ा करना होगा। सिर्फ एक जाति विशेष के मतदाताओं की राजनीति करके वे अपनी मंजिल हासिल नहीं कर पाएंगे। उन्हें राजनीति में रहना है तो किसी ना किसी दल का पार्टी का सहारा लेना ही होगा। सीढ़ी दर सीढ़ी चढ़कर ही वे मंजिल पर पहुंच सकते हैं। गौरतलब है कि भाजपा से बगावत करते हुए सहनी ने यूपी विधानसभा चुनाव में अपने प्रत्याशी उतार दिए थे। हालांकि चुनाव परिणाम उनके लिए बुरी खबर लेकर आए। सभी सीटों पर उनकी पार्टी की हार हुई।

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