गुनाहों से तौबा की रात शब-ए-बारात, क्या है शब-ए-बारात का महत्व

संजय कुमार सुमन

शब-ए-बारात मुसलमान समुदाय के लोगों के लिए इबादत और फजीलत की रात होती है। माना जाता है कि इस रात को अल्लाह की रहमतें बरसती हैं। इस बार शब-ए-बारात लॉकडाउन के बीच 9 अप्रैल को पड़ी है।इस्लामिक कैलेंडर के मुताबिक, शब-ए-बारात शाबान महीने की 15वीं तारीख को होती है।शब-ए-बारात की पाक रात को मुसलमान समुदाय के लोग इबादत करते हैं और अपने गुनाहों से तौबा करते हैं।यह अरब में लैलतुल बराह या लैलतुन निसफे मीन शाबान के नाम से जाना जाता है। जबकि, भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश, ईरान, अफगानिस्तान और नेपाल में यह शब-ए-बारात के नाम से जाना जाता है।
शब-ए-बारात दो शब्दों से मिलकर बनी है, जिसमें शब का मतलब रात और बारात का मतलब बरी होता है। इस्लाम में शब-ए-बारात की बेहद फजीलत बताई गई है।इस्लामिक मान्यताओं के मुताबिक, इस रात को अगर सच्चे दिल से इबादत की जाए और गुनाहों से तौबा की जाए तो अल्लाह हर गुनाह से पाक कर देता है।

चार मुकद्दस रातें
शब-ए-बारात इस्लाम की 4 मुकद्दस रातों में से एक है। जिसमें पहली आशूरा की रात, दूसरी शब-ए-मेराज़, तीसरी शब-ए-बारात और आखिरी शब-ए-कद्र होती है।
शब-ए-बारात की रात मुसलमान क्या करते हैं?
शब-ए-बारात की पूरी रात मुसलमान समुदाय के पुरुष मस्जिदों में इबादत करते हैं और कब्रिस्तान जाकर अपने से दूर हो चुके लोगों की कब्रों पर फातिहा पढ़कर उनकी मगफिरत के लिए अल्लाह से दुआ करते हैं। वहीं, दूसरी ओर मुसलमान औरतें घरों में नमाज पढ़कर, कुरान की तिलावत करके अल्लाह से दुआएं मांगती हैं और अपने गुनाहों से तौबा करती हैं। हालांकि, इस बार लॉकडाउन के चलते पुरुषों को मस्जिदों और कब्रिस्तान में जाने की इजाजत नहीं होगी। इसलिए इस बार पुरुष भी घरों में रहकर नमाज पढ़ेंगे और इबादत करेंगे।
गुनाहों से तौबा की रात
शब-ए-बारात की रात यानी कि गुनाहों से तौबा की रात
शब-ए-बारात की रात को इस्लाम की सबसे मुकद्दस और अहम रातों में इसलिए भी शुमार किया जाता है क्योंकि इस्लामिक मान्यताओं के मुताबिक, इंसान की मौत और जिंदगी का फैसला इसी रात किया जाता है। इसलिए शब-ए-बारात की रात को इस्लाम में फैसले की रात भी कहा जाता है।मिसाल के तौर पर आने वाले एक साल में किस इंसान की मौत कब और कैसे होगी इसका फैसला इसी रात किया जाता है।

रोजा रखने की फजीलत

शब-ए-बारात के अगले दिन रोजा रखा जाता है।माना जाता है कि शब-ए-बारात के अगले दिन रोजा रखने से इंसान के पिछली शब-ए-बारात से इस शब-ए-बारात तक के सभी गुनाह माफ कर दिए जाते हैं।हालांकि ये रोजा रखना फर्ज नहीं होता है। मतलब अगर रोजा ना रखा जाए तो गुनाह भी नहीं मिलता है लेकिन रखने पर तमाम गुनाहों से माफी मिल जाती है।

शब-ए-बारात पर घर से ही करें इबादत

कोरोना वायरस के चलते मुस्लिम धर्मगुरुओं और बुद्धजीवियों,प्रशासनिक पदाधिकारियों ने अपील की है कि देश में फैले कोरोना संक्रमण के मद्देनजर लोग शब-ए-बारात के मौके पर कब्रिस्तान, दरगाह अथवा मजारों पर जाने से बचें और घर पर ही इबादत करें।
रोजा रखने की फजीलत
शब-ए-बारात के अगले दिन रोजा रखा जाता है। इसे लेकर मान्यता है कि रोजा रखने से इंसान के पिछली शब-ए-बारात से लेकर इस शब-ए-बारात तक के सभी गुनाह माफ कर दिए जाते हैं। हालांकि इस दिन रोजा रखना जरूरी नहीं होता है।