सावधान ! जर्सी गाय का दूध है लोगों के लिए जहर

कोसी टाइम्स डेस्क / कोरोना महासंकट से निपटने के लिए दुनिया भर में रोग प्रतिरोधक क्षमता (इम्यूनिटी) को बढ़ाने के विभिन्न तरीकों पर बात की जा रही है। रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने के लिए खान पान के तौर तरीकों पर भी गौर किया जा रहा है। इसी कड़ी में कोसी टाइम्स ने आईआईटियन व मॉर्गन स्टैनली की पूर्व वाइस प्रेसिडेंट ऋचा रंजन से कोरोना से बचाव में पारंपरिक जीवन शैली के महत्व पर विस्तृत बातचीत के पहले भाग में गेहूँ से बने खाद्य सामग्री (रोटी, पिज़्ज़ा, लिट्टी आदि) के ज्यादा उपभोग से पाचन तंत्र पर पड़ने वाले प्रभाव पर बात की थी। पहले भाग के आलेख को 4 मई को कोसी टाइम्स पर प्रकाशित किया जा चुका है। आज का आलेख खान पान में दूध के उपभोग और इससे इम्युनिटी पर पड़ने वाले प्रभाव से संबंधित है।

दूध के सेवन से संबंधित जानकारी देते हुए उन्होंने बताया कि श्वेत क्रांति ने दूध के साथ वही किया जो हरित क्रांति ने गेहूं के साथ किया। हरित क्रांति के बाद जैसे देसी गेहूं का स्थान है हाईब्रीड गेहूं ने ले लिया वैसे ही श्वेत क्रांति के तहत दुग्ध उत्पादन बढ़ाने की खातिर देसी गाय के स्थान पर हमने जर्सी जैसे हाइब्रिड को पालना पोसना शुरू कर दिया।  गादेसीय के दूध में मनुष्य के पचाने लायक A2 बीटा केसीन प्रोटीन होता है जबकि जर्सी जैसे हाइब्रिड वैरायटी में A1 बीटा केसीन होता है जो कि मानव शरीर के लिए जहर जैसा होता है। वहीं कई जानकार लोगों का कहना है कि जर्सी वास्तव में गाय नहीं है, बल्कि यह पशुओं की एक अलल प्रजाति है जो गाय से मिलती-जुलती है।

इम्यूनिटी सरल है, प्राकृतिक है लेकिन बाजार तंत्र ने इसका ढिंढोरा पीट पीट कर इसे रॉकेट साइंस जैसा जटिल बना दिया है। हमने प्रकृति के साथ खिलवाड़ किया है, जिसका खामियाजा हमें भुगतना पड़ रहा है। आज बाजार का विज्ञापन तंत्र इतना हावी है कि लोग फिल्म क्रिकेट सेलिब्रिटी द्वारा प्रचारित खाद्य पर भरोसा करते हैं जबकि हमें उसके खाद्य पदार्थों के केमिकल कंपोजिशन पर गौर करना चाहिए। लेकिन लोगों के बीच जागरूकता के अभाव का बेजा फायदा खाद्य पदार्थों का उत्पाद करने वाली बड़ी-बड़ी कंपनियां उठा रही है।

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आज आप घर घर में सुबह सवेरे देख सकते हैं कि मां अपने छोटे-छोटे बच्चों को दूध पिलाने के लिए बड़े जतन करती है। दूध में स्वाद के लिए कई हेल्थ सप्लीमेंट को मिलाया जाता है ताकि बच्चा दूध पीने में ना-नुकुर नही करें। यह घर घर की कहानी है। हमें प्रकृति ने बनाया है, हमारा शरीर प्राकृतिक खाद पदार्थों के लिए बना है पर आज हम अपने शरीर को केमिकल का ओवरडोज दे रहे हैं… और केमिकल डंपिंग का यह काम बचपन से शुरू कर दिया जाता है।

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आजकल करीब करीब हर एक माता-पिता को शिकायत रहती है कि उनका बच्चा गुस्सैल स्वभाव का होता जा रहा है। बच्चा लगातार बिगड़ता जा रहा है। वह किसी की बात नहीं मानता है। अपनी मर्जी का मालिक होता जा रहा है… तो सवाल उठता है कि ऐसा क्यों हो रहा है? इसके पीछे कई कारक हैं पर खान-पान में केमिकल का अधिक उपयोग इसका एक प्रमुख कारण हैं। हमारे स्वभाव के नियंत्रण में हॉर्मोन्स की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। खाद्य पदार्थों में केमिकल्स के अत्यधिक प्रयोग से हमारे बच्चों के हॉर्मोन्स का नेचुरल वर्किंग पैटर्न डिस्टर्ब हो रहा है और इसका प्रभाव उनके व्यवहार में परिलक्षित हो रहा है।

अब सवाल उठता है कि आखिर हमारे पास विकल्प भी क्या है? हम अपने बच्चों के एपीजेनेटिक्स को बेहतर कैसे करें? यह सच है कि हमने अपनी आदतों के साथ-साथ प्रकृति और पर्यावरण के साथ जो खिलवाड़ किया है उसे एक दिन में ठीक नहीं किया जा सकता है। किसी भी बिगड़ चुकी व्यवस्था को ठीक करने में वक्त लगेगा, यह मुश्किल है पर असंभव नहीं है। हम अपने बच्चों को दूध पिलाना चाहते हैं ताकि वह शारीरिक रूप से मजबूत बने पर हमें ख्याल रखना होगा कि हम दूध के नाम पर अपने बच्चों को जहर ना दें। हमने अपने आपको प्रकृति से काट लिया है, हमें प्रकृति से जुड़ना होगा। हमें देसी गायों का संरक्षण करना होगा। आजकल बड़े बड़े महानगरों में A2 मिल्क प्रोडक्शन के लिए स्टार्टअप फॉर्म हाउस स्थापित किए जा रहे हैं। हम कम से कम अपने परिवार के लिए एक देसी गाय को तो पाल ही सकते हैं। अंग्रेजी शासन में जब हमारा भारतीय समाज अपनी सभ्यता संस्कृति से विमुख हो रहा था तब समाज सुधारक दयानंद सरस्वती ने कहा था कि वेदों की ओर लोटो पर आज के हालात को देखते हुए हम अगर जहर मुक्त जीवन जीना चाहते हैं तो हमें अपने आप से कहना होगा कि प्रकृति की ओर लौटो।