डॉ सुरेश कुमार भूषण
किसी भी बेहतर सामाजिक संरचना के लिए शिक्षा महत्पूर्ण होती है .शिक्षा सामाजिक यथार्थ को परिभाषित करती है तथा एक उन्नत समाज के लिए नया मार्ग प्रशस्त करती है .कोसी क्षेत्र की स्कूली शिक्षा की दशा अत्यंत ही दयानिये है .इस पिछड़े इलाके में शिक्षा की समस्याएं अनेक है .आजादी के कई दशक बीत जाने के बाद उपरांत भी कोसी की स्कूली शिक्षा अपनी बदहाली की कहानी कहती नहीं थकती .किसी जनप्रतिनिधि ने ईमानदारी से इस ज्वलंत सवाल को लेकर आवाज नहीं उठाया है.सबों ने चुनाव के मौके पर समस्याओं को दूर करने के वयेदे जरुज किये ,पर चुनाव जितने के बाद जनहित एवम सामाजिक स्टार स्तर से जुड़े इस प्रश्न को भूल कर अपने-अपने हितों में लगे रहे .कोसी क्षेत्र से बड़े –बड़े नाम वाले नेताओ ने संसद और विधानसभा में अपनी वाणी से चमक बिखेड़ी ,लेकिन जमीनी स्तर पर समस्याएं आज भी मुहं बाये खडी है .
कोसी क्षेत्र बाढ़ की विभीषिका से सदैव पीड़ित रहा है .एस क्षेत्र की जनता मुख्या रूप से कृषि पर आधारित है .बाढ़ के कारन उनकी कमर टूट चुकी है .वे अपने बच्चों को अपनी आर्थिक विपन्नता के कारण सही शिक्षा नहीं दे पते .और ,देना भी चाहते तो स्कूली कुव्यवस्था उनके समक्षखड़ी हो जाती है .इस क्षेत्र में हजारों वैसेविद्यालय है ,जहाँविद्यालय भवन नहीं है ,स्कूलों मेंशिक्षकों काअभाव है. शिक्षक हैं भी तो उनके बैठने के लिए कुर्सियां नहीं हैं ,बच्चों को पढ़ाने की किताबें और ब्लैकबोर्ड नहीं है …और सबसे बड़ी समस्या शिक्षकों को समय पर वेतन नहीं मिलना है .सरकार गुणवत्तापूर्ण शिक्षा लाने की बात करती तो है,पर यह कैसे संभव है ?जहाँ शिक्षकों को ही सम्मानजनक वेतन नहीं मिलता हो ,वहां गुणवत्तापूर्ण शिक्षा देने की बात पूर्णत: बेमानी होगी.
इन दिनों सरकार ने अपनी एक सोची–समझी वोट बैंक की नीति के तहत बच्चों के अविभावकों को अपनी ओर आकर्षित करने के लिए विभिन्न योजनायें चला रखी है. खिचड़ी योजना,सायकिल योजना,पोशाक योजना इत्यादि ऐसी योजनाएँ हैं,जिनसे बच्चों का कभी मानसिक विकास नहीं हो सकता .हाँ ,यह दीगर सवाल है कि स्कूलों में बच्चों की उपस्थिति लोभवश जरुर दिख पड़ती है .ये योजनायें लूट खसोट का एक जरिया बन गयी है .घटिया भोजन के कारण स्कूलों में बच्चें बीमार पड़ रहे हैं .
निजी स्कूलों के हालत भी अच्छे नहीं हैं .यहाँ भी संचालको की मनमानी चलती है .बच्चों के उज्जवल भविष्य के साथ खिलवाड़ किया जाता है .इन स्कूलों के शिक्षकों को मामूली वेतन देकर इनका मानसिक एवं आर्थिक शोषण किया जा रहा है .इन स्कूलों के शिक्षक प्रबंधक के विरुद्ध मुहं नहींखोलने में ही अपनी भलाई समझते हैं,वरना उनके विरुद्ध कारवाई तयमानी जाती है .सरकार को निजी स्कूलों को भी नियंत्रित रखना चाहिए .
अंतमें मैं कहना चाहूँगा की शिक्षकों को अपनी जवाबदेही समझनी होगी .वर्गों का संचालन उन्हें नियमीत रूप से करना पड़ेगा .सरकार शिक्षकों से गैर शैक्षणिक कार्य न करवाएं .शिक्षकों को सामान कार्य के लिए सामान वेतन उपलब्ध कराये ,तो कोसी क्षेत्र में स्कूली शिक्षा की स्थिति अच्छी हो सकती है और बच्चों का भविष्य उज्जवल हो सकता है .
(ये लेखक के निजी विचार हैं )
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