सार्वजनिक माँ दुर्गा मंदिर उदाकिशुनगंज में श्रद्धालुओं की होती है मनोकामना पूर्ण

गौरव कबीर उदाकिशुनगंज,मधेपुरा

उदाकिशुनगंज सार्वजनिक माँ दुर्गा मंदिर मनोकामना शक्ति पीठ के रूप में ख्याति प्राप्त है।यह मंदिर धार्मिक और अध्यात्मिक ही नहीं बल्कि ऐतिहासिक महत्व को भी दर्शाता है। यहां सदियों से पारंपरिक तरीके से दुर्गा पूजा धूमधाम से मनाया जाता है। पूजा के दौरान कई देवी-देवताओं की भव्य प्रतिमा स्थापित की जाती है। मंदिर समिति और प्रशासन के सहयोग से भव्य मेले का आयोजन किया जाता है।

माँ के मंदिर का इतिहास

अध्यात्म की स्वर्णिम छटा बिखेर रही सार्वजनिक दुर्गा मंदिर के बारे में स्थानीय लोगों में भिन्न भिन्न प्रकार कहानियां प्रचलित हैं।कई लोगों के द्वारा बताया गया है कि मंदिर में करीब 250 वर्षों से भी अधिक समय से यहां मां दुर्गा की पूजा की जा रही है।अंग्रेज जमाने से ही माँ की पूजा अर्चना यहाँ की जाती थी। बड़े-बुजूर्गो का कहना है कि करीब 250 वर्ष पूर्व 18 वीं शताब्दी में चंदेल राजपूत सरदार उदय सिंह और किशुन सिंह के प्रयास से इस स्थान पर मां दुर्गा की पूजा शुरू की गयी थी। तब से यह परंपरा पीढ़ी दर पीढ़ी चलते आ रहा है। उन्होंने कहा कि कोशी की धारा बदलने के बाद आनंदपुरा गांव के हजारमनी मिश्र ने दुर्गा मंदिर की स्थापना के लिए जमीन दान दी थी। उन्हीं के प्रयास से श्रद्धालुओं के लिए एक कुएं का निर्माण कराया गया था, जो आज भी मौजूद है। पहले मंदिर झोपड़ी का बना हुआ था। उदाकिशुनगंज निवासी प्रसादी मिश्र मंदिर के पुजारी के रुप में 1768 ई में पहली बार कलश स्थापित किया था। उन्हीं के पांचवीं पीढ़ी के वंशज परमेश्वर मिश्र उर्फ पारो मिश्र वर्तमान में दुर्गा मंदिर के पुजारी हैं ,और सदियों से यहाँ माँ की पूजा की जाती रही है।जबकि कई बुद्धिजीवी बुजुर्ग लोग बताते हैं की मंदिर का इतिहास ढाई सौ वर्ष पुराना नहीं है।चंदेल वंश के समय में यहाँ जंगल हुआ करता था।क्षेत्र में आबादी बढ़ने के कारण लोगों ने जंगल काटकर बसना शुरू किया।बसने वाले लोगों ने हीं मंदिर स्थापित कर पूजा पाठ शुरू किया था।मंदिर के पुजारी भी समय समय पर बदलते रहे हैं।जिसका प्रमाण भी लोगों के पास है।ज्ञातव्य हो कि मंदिर के संबंध में कई लोगों के द्वारा कई कहानियां सुनने को मिलती है।

ग्रामीण और युवा संघ के समर्पण को दर्शाता है माँ दुर्गा मंदिर

माँ दुर्गा मन्दिर उदाकिशुनगंज के ग्रामीण और माँ दुर्गा युवा संघ के अथक प्रयास का फल है।यहाँ के ग्रामीणों के द्वारा चंदा इकट्टा कर मन्दिर को भव्य रूप दिया गया है।कमिटी के सदस्य सालों मेहनत करते आ रहे हैं।सदस्य मंदिर निर्माण हेतु कड़ी मेहनत करते हैं।लोगों के दान और समर्पण मेलमिलाप भक्ति का प्रतीक है माँ दुर्गा मंदिर।जब दुर्गा पूजा नजदीक आता है तब उदाकिशुनगंज के हर एक लोग माँ के मंदिर के साफ सफाई ,सजावट और मैले के तैयारी में लग जाते हैं।हर एक भेदभाव को भूल कर लोग माँ की सेवा में लग जाते हैं।

कैसे शुरू हुई बलि प्रथा

कलश स्थापन यानी प्रथम पूजा को पहला बलि अंचल के द्वारा प्रदान किया जाता है।बताया जाता है कि पुराने समय में यहाँ अंग्रेज का कचहरी चला करता था।उस समय कचहरी के द्वारा ही पहला बलि प्रदान किया गया था।जो प्रथा आज तक चली आ रही है। नवमी ओर दशमी को भक्तों के द्वारा बलि प्रदान करने में काफी भीड़ रहती थी।जो प्रथा आज भी कायम है और भारी भीड़ आज भी बलि प्रदान करने में लगी रहती है।

एक महीने पहले से उमड़ने लगती है भक्तों की भीड़

माँ के दरबार मे भक्तो की भीड़ एक माह पहले से ही उमड़ने लगती है।भक्तों की लंबी कतार माँ के दरबार मे लगने लगती है।भक्तों का मानना है कि माँ हमारी हरेक मनोकामना पूर्ण करती है।भक्तों की माने तो कइयों को पुत्र की प्राप्ति ओर कइयों की घर को बसाया है माँ ने।माँ हमारी सारी मुरादें पूरी करती हैं।

देश के कई हिस्सों से आते हैं श्रद्धालु

माँ के ख्याति बहुत दूर दूर तक फैली हुई है।बिहार के कई कोने से भक्त यहाँ अपनी मुरादें पूरी करने आते हैं।मधेपुरा,सहरसा,सुपौल,कटिहार,पूर्णिया,बेगूसराय ,आरा ,पटना,बंगाल,पंजाब,मध्यप्रदेश सहित कई राज्यों से भक्त जन यहां आते हैं।श्रद्धालुओं के लिए यहाँ के ग्रामीण,युवा संघ हमेशा व्यवस्थित खड़े रहते हैं।
युवा संघ कमिटी के सदस्य संजीव झा,राकेश सिंह,समीर कुमार,बासुकी झा,दीपक गुप्ता,नवनीत ठाकुर उर्फ गुल्लु ,नीरज कुमार,डब्लू कुमार,सन्नी,अमित,चंदन स्टार,मनोज साह,ललटू कुमार,चंदन स्टार,रत्न पाठक आदि हमेशा भक्तों को हर सुविधा मुहैया कराने में लगे रहते हैं।

प्रशासन भी यहाँ श्रद्धालुओं के सुरक्षा में मुस्तेद रहते हैं

उदाकिशुनगंज दशहरा मेला के शुरुआत से ही स्थानीय पुलिस काफी सतर्क रहती है।आने जाने वाले श्रद्धालुओं को कोई परेशानी ना हो,सड़क पे कहीं जाम ना लगे इसके लिए प्रशासन हमेशा सजग रहती है।मेले में मनचलों ओर असामाजिक तत्वों पे प्रशासन कड़ी नजर रखती है। प्रतिमा विसर्जन लिए रूट चार्ट के साथ लाइसेंस लेना अनिवार्य होता है।साथ ही पूजा व मेला स्थल पर रोशनी की समुचित व्यवस्था के अलावे इमर्जेंसी लाइट की भी व्यवस्था आयोजन समिति के द्वारा किया जाता है।पुलिस के द्वारा सीसीटीवी कैमरा एवं सादे लिबास में आसामाजिक तत्वों पर नज़र रखी जाती है।