पप्पू जी ऊन्नै ,मैडम ईन्नै….जनता जाये तो जाये कैन्नै ? (पहली कड़ी)

अन्ना यादव
राजनीतिक विश्लेषक @ कोसी टाइम्स.

बिहार की राजनीति में वंशवाद की परिपाटी नई नहीं है…बिहार ही क्यों,पूरा भारत ही राजनीतिक वंशवाद से अछूता नहीं है.लेकिन हाल के दिनों के राजनीतिक परिदृश्य पर नजर डालने पर बहुत ही दिलचस्प तस्वीर उभर कर सामने आती है.बिहार विधानसभा चुनाव का बिगुल बजने के साथ ही बिहार के साथ साथ कोसी क्षेत्र की हवाओं में राजनीतिक गंध घुलने लगी है.कोसी का इलाका यूं तो विकास के मामले में अभी भी पिछड़ा हुआ ही है,परंतु राजनीतिक रूप से यह इलाका काफी उर्बर माना जाता है.यहां के बच्चे भी जन्म के साथ ही राजनीतिक फिजाओं में सांस लेते हुए बड़े होते हैं…और जवानी की दहलीज पर आते आते ‘राजनीति’ नामक विषय पर बोलने के मामले में ‘पीएचडी होल्डर’ हो चुके होते है.

कोसी में मधेपुरा जिले की नियती राजनीतिक चर्चाओं के केंद्र में रहने की रही है.कभी आचार्य जे.बी.कृपलानी के चुनावी समर के बहाने तो कभी इंदिरा-राजीव गांधी के दौरे के दौरान मची हो-हंगामे के कारण भी मधेपुरा का नाम देश के लोगों की जुबान पर चढ़ा था. हाल-फिलहाल तक लालू-शरद की सियासी लड़ाई से देशभर में मधेपुरा की राजनीतिक पहचान बनती थी,जब तक कि मधेपुरा से अबकी बार राजद के टिकट पर सांसद बने राजेश रंजन उर्फ पप्पू यादव राजद सुप्रिमो लालू यादव के लिए,खुद उन्हीं की जुबानी, ‘भस्मासुर’ न बन गए.कभी लालू-शरद की सियासी लड़ाई से देशभर में मशहूर हुआ मधेपुरा अब लालू-पप्पू की (बद)जुबानी जंग के कारण गाहे-बगाहे सियासी सुर्खियाँ बटोर रहा है.इसबार लालू मधेपुरा से पप्पू को टिकट देने के मूड में नहीं थे,लेकिन शरद यादव को लालू के बाद केवल पप्पू राजद से पटकनी दे सकते थे और लालू खुद चुनाव लड़ नहीं सकते थे,तो मजबूरी में शरद यादव को हराने के लिए लगाया लालू का यह दांव अब उन्हीं पर भारी पड़ रहा है….कल पढ़िए इस खास चुनावी आलेख की अगली कड़ी

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