मुरली मनोहर घोष
कोसी टाइम्स@बारसोई, कटिहार
कटिहार लोकसभा क्षेत्र- 11 में द्वितीय चरण में 18 अप्रैल को चुनाव होना है । चुनाव में मात्र अब लगभग 6 दिन शेष रह गए हैं, बावजूद इसके यहां चौक-चौराहों एवं गलियों में कोई सरगर्मी नजर नहीं आ रही है तथा अभूतपूर्व मतदाता जागरूकता अभियान के बाद भी यहां मतदाताओं में कोई खास उत्साह नहीं दिख रही है ।
1645713 मतदाता वाले इस लोकसभा क्षेत्र में इस बार विकास के मुद्दे गौण हैं । जीत एवं हार को यहां जातीय समीकरण के गणित से देखा जा रहा है । बाढ़ , बेरोजगारी एवं बिचौलिए से त्रस्त इस क्षेत्र में जातीय गोलबंदी शुरू हो चुकी है तथा लोग अपने- अपने हिसाब से उम्मीदवारों के जीत एवं हार का अंदाजा लगा रहे हैं । 6 विधानसभा वाले इस लोकसभा क्षेत्र का कदवा, मनिहारी , प्राणपुर एवं बलरामपुर विधानसभा क्षेत्र के लोग प्रायः बाढ़ से बुरी तरह से प्रभावित होते रहते हैं , लेकिन उनके समस्या का आज तक कोई ठोस निदान नहीं हो पाया है जिससे वे भाग्य भरोसे जीने को मजबूर हैं । यहां सबसे बुरी हालत किसानों की है , उनकी हालत दिन-ब-दिन बदतर होते जा रही है तथा वह किसान से खेतिहर मजदूर बनते जा रहे हैं । इस लोकसभा क्षेत्र से रोजी रोटी की तलाश में हजारों की संख्या में मजदूरों का अन्य राज्यों में पलायन जगजाहिर है । यहां बेरोजगारी का आलम यह है कि उद्योग धंधे के अभाव में शायद ही देश का ऐसा कोई शहर होगा जहां कटिहार के मजदूर नहीं पाए जाते हो ।
इस क्षेत्र में कोई बड़ा उद्योग धंधे नहीं होने के कारण बेरोजगारी के आलम में मजदूर रोजी रोटी की तलाश में दिल्ली, मुंबई , बैंगलोर , राजस्थान ,गुजरात जैसे शहरों में जाकर काम करते हैं तथा किसी तरह दो जून की रोटी जुटा कर अपने परिवार का पालन-पोषण करते हैं । जिले में यद्यपि सड़क एवं बिजली की हालत पहले से काफी सुधरी है , बावजूद इसके दूरवर्ती गांव में अभी भी बहुत कुछ किया जाना बाकी है । शिक्षा यहां आंकड़ा तक ही बहुत हद तक ठीक है , जबकि हकीकत यहां कुछ और बयां करती है । यहां के लोग अन्य क्षेत्र की तुलना में अभी भी शांतिप्रिय है कुछ अपवादों को छोड़ दिया जाए तो यहां के हिंदू एवं मुस्लिम गंगा-जमुना संस्कृति में विश्वास करते हैं । तथा सुख- दुख एवं शादी-विवाहों में उनका एक दूसरों के यहां आना जाना होता है । यहां के लोग गरीबी झेलते-झेलते टूट चुके हैं तथा वह झगड़ा झंझट पसंद नहीं करते हैं एवं ऐसे में वे सहज ही बिचौलिए का शिकार हो जाते हैं जिनसे उनका आर्थिक शोषण बदस्तूर जारी है ।