अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस:-महिलाओं का संघर्ष और चुनौतियों

संजय कुमार सुमन(साहित्यकार) sk.suman379@gmail.com

8 मार्च को पूरी दुनिया में महिला दिवस की धूम मची होती है। देश-दुनिया के हर गली-मोहल्‍ले में महिला दिवस को मनाया जाता है।यूं तो आधुनिक भारत में महिलाओं की स्थिति में काफी बदलाव आया है। फिर भी समाज में रुढ़िवादी सोच के कारण नारी सशक्तिकरण में अभी भी कई अड़चनें बाकी हैं। हमारे जीवन में महिलाएं कई किरदार निभाती हैं। इन्हीं सभी किरदारों से मिलकर बनती है हमारी जिंदगी। घर में मां, बहन, पत्नी, बेटी और घर के बाहर दोस्त, प्रेमिका, सहपाठी, ऑफिस में कलिग, सीनियर, बॉस हर जगह महिलाओं की उपस्थिति होती है। ये महिलाएं अपने किरदार को निभाते हुए कई संघर्ष और चुनौतियों का सामना करती हैं, लेकिन हम उन्हें जरूरी सम्मान और अधिकार नहीं दे पाते।महिला-पुरूष की बराबरी की बात करने वाला तबका भी शायद उसी भीड़ का हिस्‍सा है। यही वह तबका है जो एक तरफ तो काली, दुर्गा, सरस्‍वती, लक्ष्‍मी जैसी देवियों की पूजा करता है तो दूसरी ओर बलात्‍कार जैसे कृत्‍य को अंजाम देता है और महिला सूचक गालियों को समाज में बनाये रखने में भी कोई कसर नहीं छोड़ता।महिलाओं को समानता एवं सम्मानजनक जीवन प्रदान करने कि दिशा में आयोग का आवश्यक अंग है, न्याय कि उप्लबधता, यह सुविधारहित वर्गों कि महिलाओं के लिए नितांत आवश्यक है महिलाओं को क़ानूनी अधिकारों का पूर्ण उपयोग करना चाहए, जिसके लिए उन्हें न केवल क़ानूनी प्रावधानों अपितु केंद्र एवं राज्य सरकारों द्वारा उनके लाभार्थ चलायी जा रही आर्थिक सामजिक एवं विकास योजनाओ से भी अवगत कराये जाने कि आवशकता है।भारत में, महिलाओं को सशक्त बनाने के लिए सबसे पहले समाज में उनके अधिकारों और मूल्यों को मारने वाली उन सभी राक्षसी सोच को मारना जरुरी है। जैसे दहेज प्रथा, यौन हिंसा, अशिक्षा, भ्रूण हत्या, असमानता, महिलाओं के प्रति घरेलू हिंसा, कार्य स्थल पर यौन शोषण, बाल मजदूरी, वैश्यावृति, मानव तस्करी और ऐसे ही दूसरे विषय, लैंगिक भेदभाव राष्ट्र में सांस्कृतिक, सामाजिक, आर्थिक और शैक्षिक अंतर ले आता है जो देश को पीछे की ओर धकेलता है। भारत के संविधान में लिखे गए समानता के अधिकार को सुनिश्चित करने के लिए महिलाओं को सशक्त बनाना सबसे प्रभावशाली उपाय है। लैंगिक समानता को प्राथमिकता देने से पूरे भारत में नारी सशक्तिकरण को बढ़ावा मिला है।

यह बात सही है कि महिलाओं को यह याद दिलाना आवश्यक है कि समाज में उनके योगदान का क्या महत्व है मगर इसके दूसरे आयाम को हम कदाचित नज़र अंदाज़ कर देते हैं। क्या असल में महिलाओं को सशक्तिकरण की आवश्यकता है? या फिर यह केवल कुछ गैर सरकारी संगठनों के लिए एक केंद्रीय मुद्दा बनने का सुअवसर मात्र है? कई महिलाएं जो खुद को कमज़ोर महसूस करती हैं, उसका कारण यह नहीं कि वह वास्तव में कमज़ोर हैं बल्कि इसलिए क्योंकि उन्हें ऐसा महसूस करवाया जाता है।

मानसिक प्रताड़ना, शारीरिक शोषण और महिलाओं के घरेलू कार्यों को शून्य के बराबर महत्व देने की सामाजिक प्रवृत्ति और महिला की प्राकृतिक शारीरिक कोमलता को उसकी कमज़ोरी मानना जैसे चीज़ों से यह महसूस कराने में कोई कसर नहीं छोड़ी जाती कि एक महिला कमज़ोर है।

जिस देश में माँ पूजनीय है, उसी देश के युवा जब माँ-बहन की अभद्र गालियां देने में संकोच नहीं करते, तब मैं सोचने पर मजबूर हो जाता हूं कि आखिर किस दिशा में हमसे गलती हो रही है। इसका जवाब केवल एक ही निकलकर आता है और वह है शिक्षा व्यवस्था, जो बच्चे की सोच को बचपन से सींचती है और उसके युवा बनने पर सामाजिक सोच का सृजन करती है।नारी के बिना पुरूष की परिकल्पना भी नही की जा सकती। ईश्वर ने नारी को सहज और सरल बनाया है, कोमल बनाया है। उसे क्रूर नही बनाया। निर्माण के लिए सहज, सरल, और कोमल स्वभाव आवश्यक है। विध्वंश के लिए क्रूरता आवश्यक है। रानी लक्ष्मीबाई हों या अन्य कोई वीरांगना, अपनी सहनशक्ति की सीमाओं को टूटते देखकर ही और किन्ही अन्य कारणों से स्वयं को असूरक्षित अनुभव करके ही क्रोध की ज्वाला पर चढ़ी।

भारत ही नहीं वैश्विक स्तर पर हाल के वर्षों और पूर्व के कुछ दशकों से महिला वर्ग ने सभी क्षेत्रों में अपनी योग्यता, क्षमता और मेधा के बल पर अपनी प्रतिष्ठापना कर प्रसिद्धि प्राप्त करने में पीछे नहीं है। फिर भी वह भोग्या और केवल भोग्या के रूप में देखी जा रही है।

सही मायने में महिला दिवस तब ही सार्थक होगा जब विश्व भर में महिलाओं को मानसिक व शारीरिक रूप से संपूर्ण आजादी मिलेगी, जहां उन्हें कोई प्रताड़ित नहीं करेगा, जहां उन्हें दहेज के लालच में जिंदा नहीं जलाया जाएगा, जहां कन्या भ्रूण हत्या नहीं की जाएगी, जहां बलात्कार नहीं किया जाएगा, जहां उसे बेचा नहीं जाएगा।

नारी तुम प्रेम हो, आस्था हो, विश्वास हो,
टूटी हुई उम्मीदों की एकमात्र आस हो,
हर जन का तुम्हीं तो आधार हो,
नफरत की दुनिया में मात्र तुम्हीं प्यार हो,
उठो अपने अस्तित्त्व को संभालो,
केवल एक दिन ही नहीं,
हर दिन नारी दिवस बना लो,
नारी दिवस की हार्दिक बधाई !
नारी एक मांहै उसकी पूजा करो,
नारी एक बहनहै उससे स्नेह करो,
नारी एक भाभीहै उसका आदर करो,
नारी एक पत्नीहै उससे प्रेम करो,
नारी एक औरतहै उसका सम्मान करो।

अगर हम महिलाओं के सम्मान और हक की बात कर रहे हैं तो तनिक आधुनिक अतीत में भी झाकेंगे तो पाएंगे कि नारी समाज को स्वतः बेड़ियां तोड़कर आगे बढ़ना पड़ा है।गौरतलब है कि तब से अब तक भारत की गंगा सहित विश्व की अनेक प्रतिष्ठित नदियों में ना जाने कितना पानी बह गया होगा, लेकिन मानव समाज में नारियों को बराबरी का हक नहीं मिला है।

नारी-समाज भले ही कर्मठता और सेवा के साथ मेधा और चरित्र-संभाल के मामले में पुरूषों से अधिक नैतिक और ईमानदार हो, लेकिन पुरूष वर्ग के सामने वह आज भी हीन और शोषित बनी हुई है।