“आर्थिक न्याय” गरीबी रेखा नहीं अमीरी रेखा लागू करें मौजूदा भारत सरकार-बिहार प्रदेश संयोजक प्रशान्त कुमार

कोसी टाइम्स ब्यूरो@पटना

भारत के प्रत्येक नागरिक को कम से कम 10,000 हजार रुपया उसके हिस्से का नागरिक भत्ता मिलें प्रतिमाह।समाज में सारी विकृतियों की जड़ आर्थिक अन्याय है प्राचीन भारतीय सनातन संस्कृति पूरी तरह आर्थिक न्याय पर आधारित थी।जिसमें किसी भी व्यक्ति के साथ कोई भी अन्याय नहीं कर सकता था और सब लोग एक दूसरे से पूरी तरह संतुष्ट विश्वास सद्भाव प्रेम और सहयोग का पूरी तरह स्पष्ट और पारदर्शी व्यवहार करते थे कोई किसी का भी शीर्षक नहीं था।

उक्त बातें आर्थिक न्याय संगठन “हम हैं भारत” के बिहार प्रदेश संयोजक प्रशान्त कुमार उर्फ राजा बाबू ने कही।उन्होंंने कहा कि आज की स्थितियों में नई नई मशीनें आई है और उन्होंने अर्थव्यवस्था से मेहनत की भूमिका को समाप्त कर दिया है लेकिन अनेक आविष्कारों के कारण जो अतिरिक्त लाभ मिला वह केवल कुछ लोगों के पास गया जबकि बाकी सारे लोग भी उसके समान रूप से हकदार थे और इसी के कारण एक तरफ तो विशाल जनता अभावग्रस्त रह गई तो दूसरी तरफ मुट्ठी भर लोग अति संपन्न हो गए और मुट्ठी भर आती संपन्न लोगों ने जिस प्रकार अन्याय अत्याचार छल कपट जजमानी और लूट मजा कर येन केन प्रकारेण अपनी संपत्ति में निरंतर वृद्धि करते जा रहे हैं। यही समाज के लिए सबसे अधिक चिंता की बात है।मेरा कहना इतना ही है कि जो भी व्यवस्था बनी उसका संपूर्ण लाभ और संपूर्ण हानि पूरे समाज में बिना किसी भेदभाव के लगातार वितरित होते रहने चाहिए तो समाज में भी कोई विकृति पैदा नहीं होती।इसलिए आज पूरा समाज इस प्रकार का व्यवस्था परिवर्तन चाहता है। वह मात्र प्राकृतिक संसाधनों से मिलने वाले अतिरिक्त लाभ का समान वितरण चाहता है और इसे केवल औसत सीमा से अधिक संपत्ति पर संपत्ति कर लगाकर आसानी से पूरे समाज समझा और समझाया जा सकता है। यह कुछ भी कठिन नहीं है।उन्होंने कहा कि वर्तमान व्यवस्था पूरी तरह षड्यंत्र पर आधारित है। मुट्ठी भर अमीरों के पास सारी संपत्ति कटी हो गई है,जो खुले तौर पर समाज की लूट है। उसमें न्याय का कोई स्थान नहीं ।औसत संपत्ति अधिकार के आधार पर औसत से अधिक संपत्ति पर ब्याज की दर से संपत्ति कर लगाना, बाकी सारे करो को समाप्त करना, संपत्ति कर से होने वाली आय में से ही सरकार के बजट का खर्च काटना और से शुद्ध लाभ को देश के हर नागरिक में बिना किसी भेदभाव के निरंतर बराबर बराबर वितरित करते रहना यही स्थाई शांति का सबसे अच्छा आधार है।इसीलिए सारे टैक्सों को हटाकर केवल औसत सीमा से ज्यादा संपत्ति पर ब्याज की दर से संपत्ति कर लगाया जाना चाहिए।उसी में से सरकार के बजट का खर्च काटकर शुद्ध लाभ को देश के सारे नागरिकों में बिना किसी भेदभाव के बराबर बराबर लाभांश के रूप मे निरंतर वितरित करते रहना चाहिए।

उन्होंने कहा कि दुनिया के तमाम अर्थशास्त्री एवं विद्वानों तथा आर्थिक न्याय संस्थान नई दिल्ली अध्ययन के अनुसार इस समय देश की 80% से अधिक संपत्ति पर अधिक से अधिक 1% अर्थात सबसे अमीरों के पास है।
यदि उनकी इस अधिक संपत्ति पर ब्याज की दर से संपत्ति कर लगाया जाए तो देश के वर्तमान बजट से 3 गुना बजट बनाने के बावजूद भी हर नागरिक को कम से कम 10000 रुपए प्रतिमाह जन्म से मृत्यु तक लाभांश के रूप में मिलते रहेंगे। किसी के सामने भी किसी प्रकार के अभाव अन्याय अत्याचार,शोषण और उत्पीड़न की कोई भी समस्या पैदा नहीं होगी। हर व्यक्ति सुख शांति और समृद्धि के साथ शांति का जीवन जी सकेगा!उन्होंने कहा कि समय की मांग है “आर्थिक न्याय” गरीबी रेखा नहीं अमीरी रेखा लागू करें मौजूदा भारत सरकार,धन का गोपनीयता का काला कानून सम्पात करें मौजूदा भारत सरकार,सम्पतिकर लागू करें मौजूदा भारत सरकार।