सरकार मेडिकल कॉलेज के अधिकारी तो बदल दिए, व्यवस्था कब बदलेगी

 

प्रशांत कुमार                                                                                                                                      संपादक, कोसी टाइम्स 

 

जन नायक कर्पूरी ठाकुर मेडिकल कॉलेज एंड अस्पताल मधेपुरा के शिलान्यास को सात वर्ष और उद्घाटन को एक वर्ष से ज्यादा हो गया है लेकिन यहाँ अब तक केवल अधिकारी बदले गये है व्यवस्था नही बदल पाई है. कोसी के एम्स कहे जाने वाले इस संस्था के पास आज मरीजों के लिए सुविधाओं का घोर अभाव है. यहाँ के अधिकारीयों के मुंह से अब भी यहीं सुनने को मिलता है कि हमलोग सिमित संसाधनों में बेहतर काम करने की कोशिश कर रहे है. जब कभी कोई अधिकारी सरकार के घोषणा के मुताबिक बिना संसाधन के हवा हवाई नही कर पाते है तो उसे बदल दिए जाते है.

अभी हाल में मेडिकल कॉलेज मधेपुरा पुरे राज्य सहित देश भर में चर्चा बटोरा है.दुःख की बात ये है कि ये चर्चा नकारात्मक मामलों में हुई लेकिन सवाल है कि काम सकारत्मक हो तब तो सकारत्मक टिप्पणी या खबरे चल पायेगी. कोसी टाइम्स ने मेडिकल कॉलेज के हर गतिविधियों पर नजर रखा है जिससे आमजन का कल्याण हो पाए. अभी लगातार कोरोना के दुसरे लहर के बाद कोसी टाइम्स द्वारा यहाँ लोगों को मिल रही सुविधा पर नजर रखी गयी जिसमे यहाँ इलाज के नाम पर केवल कमी ,लापरवाही और अनियमितता मिली.सरकार ने यहाँ 500 बेड का कोविड अस्पताल का घोषणा कर दिया लेकिन संसाधन के नाम पर जीरो. न चिकित्सक है न मेडिकल साइंस के आधुनिकतम उपकरण को चलने वाले लोग .न वार्ड बॉय न नर्स . हर तरफ केवल कमियां है तो लोगों को कहाँ से इलाज मिल पायेगा. कुछ लोगों का इलाज हो पा रहा है जो सामान्य रूप से बीमार है .लेकिन इस विशालतम कॉलेज की स्थापना असाध्य रोगों के इलाज हेतु की गयी थी.

एक बार फिर मेडिकल कॉलेज अभी चर्चा में है. सरकार द्वारा यहाँ के प्राचार्य और अधीक्षक दोनों बदल दिए गये है. सरकार ने इतने बड़े संकट में इतना बड़ा फैसला लिया है निश्चित ही कोई बड़ी गड़बड़ी पकड़ी होगी.अगर गड़बड़ी नही पकड़ी गयी तो इसे बदला नही जाता . प्राचार्य के मुख्यालय से गायब रहने की खबर आम थी. चिकित्सक के लापरवाही की खबर कई बार सामने आई है. प्राचार्य खुद कई बार चिकित्सकों की लापरवाही को पकड़ा है स्पष्टीकरण भी पूछा लेकिन कार्रवाई क्या हुई ये अब तक सामने नही आ पाई है. अधीक्षक कई मामले में सही थे. कोरोना के दूसरी लहर में वो अपने हिसाब से बेहतर करने की कोशिश भी कर रहे थे लेकिन मरीज के बढती संख्या और संसाधन की कमी से वो परेशान रहते थे.

मीडिया के सामने वो मुखर होकर ऑक्सीजन की कमी और मैन पॉवर की कमी को कबुलते थे. लगातार मीडिया में ये बात सामने आने के बाद अधीक्षक पर शायद सरकार गुस्सा हो गयी. अभी पिछले दिन वहां नो ऑक्सीजन  बेड का बोर्ड लग गया था कारण था कि उनके पास ऑक्सीजन सिलेंडर की संख्या नही बढ़ पा रही थी.बात सही थी इलाज की व्यवस्था उनको करना था लेकिन संसाधन उनको नही था तो वो ऐसा सुचना जारी कर दिया.प्राचार्य और अधीक्षक में कई मामलों में बनाव नही था.एक दुसरे पर आरोप लगते रहते थे.

पिछली बार भी स्वास्थ्य विभाग के प्रधान सचिव प्रत्यय अमृत ने मेडिकल कॉलेज का निरिक्षण किया था जिसके बाद बड़े बेबाकी से यहाँ की व्यवस्था से खुद को असंतुष्ट बताया था.उस समय भी कमोबेस मेडिकल कॉलेज और अस्पताल का यहीं हाल था.उस समय के अधीक्षक डॉ कर्नल अहमद अंसारी पर भी कई तरह के आरोप लगे थे.निरिक्षण के कुछ दिन बाद ही कर्नल डॉ अहमद अंसारी हटा दिए गये थे. इस बार फिर दो अधिकारी हटा दिए गये लेकिन व्यवस्था में बदलाव क्या हुआ ? आज भी वो संकट बरकरार है.जब विभाग के प्रधान सचिव खुद यहाँ के समस्याओं को देखकर गये तो उसमे साल भर बाद भी बदलाव क्यों नही हो पाया ? क्या सच में सरकार बस लोगों को बड़े बड़े भवन दिखाकर ठगना चाहती है ? क्या सरकार लोगों को इलाज नही देना चाहती है ? एक साल में बस एक बड़ा बदलाव हुआ कि मेडिकल कॉलेज को एमसीआई से मान्यता मिल गया जिसके बाद यहाँ 100 छात्रों का नामांकन हो पाया है.

कुछ सवाल है जो कोसी सहित समूचे बिहार के लोगों के जेहन में है .अधिकारी बदल दिए गये है अब .क्या यहाँ चिकित्सकों की कमी दूर की जा रही है ? क्या यहाँ ऑक्सीजन सिलेंडर की संख्या बढ़ गयी है ? क्या अत्याधुनिक उपकरणों को चलने के लिए लोगों की संख्या बढ़ा दी गयी है ? मेडिकल कॉलेज में एम्बुलेंस और शव वाहन बढ़ा दिए गये ? क्या यहाँ करीब सात सौ कर्मी की आवश्यकता के जगह पर कम से कम पांच सौ लोग भी पुरे हो पाए ? अगर नही तो सरकार जिन नये लोग पर ये जिम्मेदारी देने जाने रहे है इसकी क्या गारंटी है कि वो मेडिकल कॉलेज को बेहतर ढंग से संचालित करते हुए जन कल्याण के कार्य कर पाएंगे ?सरकार को इन तमाम मुद्दों पर सोंचने की आवश्यकता है .