राज्यसभा में धारा 370 और 35A खत्म, राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने भी दी मंजूरी

संजय कुमार सुमन

मोदी सरकार ने दूसरे कार्यकाल के दौरान ऐतिहासिक फैसला लिया जिसका लंबे वक्त से देश को इंतजार था। आज कश्मीर मुद्दे पर संसद में भारी गहमागहमी के बीच गृहमंत्री अमित शाह ने कश्मीर से अनुच्छेद 370 के खंडों को हटाने का संकल्प पेश किया। राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने भी इस विधेयक पर हस्ताक्षर करते हुए आदेश पत्र जारी कर दिया है।

जारी किए गए आदेश पत्र के अनुसार , इस आदेश का नाम संविधान(जम्मू और कश्मीर पर लागू) आदेश 2019 है। इसे तत्काल लागू करने का कहा गया है और इसके बाद यह समय समय पर संशोधित संविधान आदेश 1954 का अधिक्रमण करेगा।

आदेश में कहा गया है कि अनुच्छेद 367 में नया खंड जोड़ा जाएगा, जिसके अंतर्गत इस संविधान या उसके उपबंधों के निर्देश को राज्य में लागू संविधान और उसके उपबंधों का निर्देश माना जाएगा।

राष्ट्रपति द्वारा जारी किए गए इस आदेश के पूर्व जब गृह मंत्री अमित शाह ने इस विधेयक को पेश किया तो राज्यसभा में जमकर हंगामा मच गया। विपक्ष द्वारा इसका विरोध किया गया।इससे पहले रविवार को गृहमंत्री अमित शाह ने कश्मीर घाटी में आतंकी खतरे, सुरक्षा तैयारियों और आगे की रणनीति पर विचार करने के लिए उच्च स्तरीय बैठक की थी।

राज्यसभा में गृहमंत्री अमित शाह द्वारा सोमवार को कश्मीर में लागू धारा 370 और 35A को खत्म करने के प्रस्ताव को पेश किया गया।गृहमंत्री अमित शाह ने राज्यसभा में कहा कि अनुच्छेद 370 के सभी खंड लागू नहीं होंगे।सिर्फ खंड 1 रहेगा।गृह मंत्री अमित शाह ने जम्मू कश्मीर आरक्षण अधिनियम 2004 पर पुनर्विचार किये जाने की भी मांग की।

इसके साथ ही राज्यसभा में ये भी ऐलान किया गया है कि लद्दाख को जम्मू और कश्मीर से अलग किया जाएगा। मोदी सरकार ने नए फैसलों के मुताबिक जम्मू और कश्मीर को अब केंद्र शासित प्रदेश बनाया जाएगा, जहां विधानसभा भी होगी।इसके अलावा लद्दाख को भी केंद्र शासित प्रदेश बनाया गया है, हालांकि यहां विधानसभा नहीं होगी।

गृह मंत्री अमित शाह ने कहा यह पहली बार नहीं है, कांग्रेस ने 1952 और 1962 में इसी तरह से अनुच्छेद 370 को संशोधित किया। इसलिए विरोध करने के बजाए चर्चा कीजिए और आपकी जो भी गलतफहमियां हैं उन्हें दूर करें। मैं आपके सवालों का जवाब देने के लिए तैयार हूं।इतने सालों से देश में जम्मू कश्मीर के अल्पसंख्यकों को आरक्षण का लाभ नहीं मिला, अब समय आ गया है कि इस अनुच्छेद को हटाया जाए और इसमें एक सेकेंड की भी देरी न की जाए।गृह मंत्री अमित शाह ने कहा संविधान में अनुच्छेद 370 अस्थाई था, इसका मतलब ही यह था कि इसे किसी न किसी दिन हटाया जाना था लेकिन अभी तक किसी में राजनीतिक इच्छाशक्ति नहीं थी, लोग वोट बैंक की राजनीति करते थे लेकिन हमें वोट बैंक की परवाह नहीं है।जम्मू-कश्मीर का अलग झंडा भी नहीं होगा। अब बाहरी राज्यों के लोग भी जम्मू एवं कश्मीर में जमीन खरीद सकते हैं। गृह मंत्री अमित शाह ने कहा की अब जम्मू-कश्मीर का अलग झंडा भी नहीं होगा। अब बाहरी राज्यों के लोग भी जम्मू एवं कश्मीर में जमीन खरीद सकते हैं।

गृह मंत्री अमित शाह ने कहा, जम्मू कश्मीर विधानसभा वाला केन्द्र शासित प्रदेश बनेगा, वहीं लद्दाख को बगैर विधानसभा के केन्द्र शासित प्रदेश बनाया जाएगा।

बता दें कि लद्दाख के अंतर्गत लेह और कारगिल भी आते हैं. मोदी सरकार के इस फैसले के बाद 59,196 वर्ग किलोमीटर में फैला लद्दाख अब जम्मू कश्मीर से मुक्त हो जाएगा। साल 2011 में जनगणना रिपोर्ट के मुताबिक वहां उस समय 2,74,289 लोगों की आबादी थी।केंद्र शासित प्रदेश बनने के बाद लद्दाख अब पूरी तरह से केंद्र सरकार के नियंत्रण में आ जाएगा।

केंद्र शासित प्रदेश क्या होता है

केंद्र शासित प्रदेश में केंद्र सरकार की तरफ से बनाए गए कानून के तहत काम होता है। हालांकि, भले ही यहां मुख्यमंत्री को जनता चुनकर भेजती हो। संविधान के अनुसार यहां के कार्यों को करने का अधिकार सीधे राष्ट्रपति को होता है। अंडमान-निकोबार, दिल्ली और पुडुचेरी का मुखिया उपराज्यपाल होता है। इन राज्यों में राज्यपाल को मु्ख्यमंत्री से ज्यादा अधिकार होते हैं।केंद्र शासित प्रदेश में केंद्र सरकार की तरफ से बनाए गए कानून के तहत काम होता है। हालांकि, भले ही यहां मुख्यमंत्री को जनता चुनकर भेजती हो। संविधान के अनुसार यहां के कार्यों को करने का अधिकार सीधे राष्ट्रपति को होता है। अंडमान-निकोबार, दिल्ली और पुडुचेरी का मुखिया उपराज्यपाल होता है। इन राज्यों में राज्यपाल को मु्ख्यमंत्री से ज्यादा अधिकार होते हैं।

कैसे बदलेगा जम्मू कश्मीर

-जम्मू कश्मीर अब राज्य नहीं रहा, इसे लद्दाख से अलग किया गया।

-जम्मू कश्मीर में विधानसभा होगी, लद्दाख में विधानसभा नहीं होगी।

-पहले यहां पर अलग संविधान होता था, अलग झंडा होता था लेकिन अब न अलग झंडा और न अलग संविधान होगा।

-पहले यहां पर राज्यपाल शासन लगता था लेकिन अनुच्छेद 370 हट जाने के बाद यहां पर राष्ट्रपति शासन लागू होगा।

-जम्मू कश्मीर पुलिस अब राज्यपाल को रिपोर्ट करेगी।

जम्मू-कश्मीर में इंटरनेट सेवा बंद, प्रशासन ने सभी स्कूलों और कॉलेजों बंद रखने का दिया आदेश

क्या है आर्टिकल 35A

जम्मू-कश्मीर राज्य के लिए स्थायी नागरिकता के नियम और नागरिकों के अधिकार तय आर्टिकल 35A से होते हैं। इसके तहत 14 मई 1954 के पहले जो कश्मीर में बस गए थे, वही स्थायी निवासी हैं। स्थायी निवासियों को ही राज्य में जमीन खरीदने, सरकारी रोजगार हासिल करने और सरकारी योजनाओं में लाभ के लिए अधिकार मिले हैं। किसी दूसरे राज्य का निवासी जम्मू-कश्मीर में जाकर स्थायी निवासी के तौर पर न जमीन खरीद सकता है, न ही राज्य सरकार उन्हें नौकरी दे सकती है। इसके अलावा, जम्मू-कश्मीर की कोई महिला अगर भारत के किसी अन्य राज्य के व्यक्ति से शादी कर लेती है तो उसके अधिकार छिन जाते हैं। हालांकि पुरुषों के मामले में ये नियम अलग है।ऐसे में एक तरह से कहा जाए तो भारत का अभिन्न हिस्सा होते हुए भी जम्मू-कश्मीर स्वायत्त है।

भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू और राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद जम्मू-कश्मीर में जारी सरगर्मी के बीच कहा जा रहा है कि भारत सरकार कश्मीर को मिले विशेष दर्जे को हटा सकती है।भारत के पूर्व वित्त मंत्री अरुण जेटली ने कश्मीर को लेकर पूर्व प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू पर हमला बोला था।

सुप्रीम कोर्ट में अनुच्छेद 35-ए के ख़िलाफ़ कई याचिकाएं दाख़िल की गई हैं। ‘वी द सिटिज़न्स’ नाम के एक एनजीओ ने भी एक याचिका दाख़िल की है।

35-ए से जम्मू-कश्मीर को विशेषाधिकार मिला हुआ है।जम्मू-कश्मीर से बाहर का कोई भी व्यक्ति यहां अचल संपत्ति नहीं ख़रीद सकता है।इसके साथ ही कोई बाहरी व्यक्ति यहां की महिला से शादी करता है तब भी संपत्ति पर उसका अधिकार नहीं हो सकता है।1954 में राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद के आदेश से अनुच्छेद 35-ए को भारतीय संविधान में जोड़ा गया था। ऐसा कश्मीर के महाराजा हरि सिंह और भारत सरकार के बीच हुए समझौते के बाद किया गया था।इस अनुच्छेद को संविधान में शामिल करने से कश्मीरियों को यह विशेषाधिकार मिला कि बाहरी यहां नहीं बस सकते हैं।

राष्ट्रपति ने यह आदेश संविधान के अनुच्छेद 370 (1) (d) के तहत दिया था।इसके तहत राष्ट्रपति जम्मू-कश्मीर के हित में कुछ ख़ास ‘अपवादों और परिवर्तनों’ को लेकर फ़ैसला ले सकते हैं।इसीलिए बाद में अनुच्छेद 35-ए जोडा गया ताकि स्थायी निवासी को लेकर भारत सरकार जम्मू-कश्मीर के अनुरूप ही व्यवहार करे।

जम्मू-कश्मीर का भारत में विलय

भारत में जम्मू-कश्मीर के विलय में ‘द इन्स्ट्रूमेंट ऑफ एक्सेशन’ को क़ानूनी दस्तावेज़ माना जाता है। तीन जून, 1947 को भारत के विभाजन की घोषणा के बाद राजे-रजवाड़ों के नियंत्रण वाले राज्य निर्णय ले रहे थे कि उन्हें किसके साथ जाना है।

उस वक़्त जम्मू-कश्मीर दुविधा में था।12 अगस्त 1947 को जम्मू-कश्मीर महाराज हरि सिंह ने भारत और पाकिस्तान के साथ ‘स्टैंड्सस्टिल अग्रीमेंट’ पर हस्ताक्षर किया।

पाकिस्तान ने इस समझौते को मानने के बाद भी इसका सम्मान नहीं किया और उसने कश्मीर पर हमला कर दिया।पाकिस्तान में जबरन शामिल किए जाने से बचने के लिए महाराजा हरि सिंह ने 26 अक्टूबर, 1947 को ‘इन्स्ट्रूमेंट ऑफ एक्सेशन’ पर हस्ताक्षर किया।

‘इन्स्ट्रूमेंट ऑफ एक्सेशन’ में कहा गया है कि जम्मू-कश्मीर भारत का हिस्सा होगा लेकिन उसे ख़ास स्वायत्तता मिलेगी।इसमें साफ़ कहा गया है कि भारत सरकार जम्मू-कश्मीर के लिए केवल रक्षा, विदेशी मामलों और संचार माध्यमों को लेकर ही नियम बना सकती है।

अनुच्छेद 35-ए 1954 में राष्ट्रपति के आदेश के बाद आया।यह ‘इन्स्ट्रूमेंट ऑफ एक्सेशन’ की अगली कड़ी थी। ‘इन्स्ट्रूमेंट ऑफ एक्सेशन’ के कारण भारत सरकार को जम्मू-कश्मीर में किसी भी तरह के हस्तक्षेप के लिए बहुत ही सीमित अधिकार मिले थे।

अनुच्छेद 35-ए को संविधान में ग़लत तरीक़े से जोड़ गया?

कई लोग मानते हैं कि अनुच्छेद 35-ए को संविधान में जिस तरह से जोड़ा गया वो प्रक्रिया के तहत नहीं था।बीजेपी नेता और वकील भूपेंद्र यादव भी ऐसा ही मानते हैं।संविधान में अनुच्छेद 35-ए को जोड़ने के लिए संसद से क़ानून पास कर संविधान संशोधन नहीं किया गया था।

संविधान के अनुच्छेद 368 (i) अनुसार संविधान संशोधन का अधिकार केवल संसद को है।तो क्या राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद का यह आदेश अधिकार क्षेत्र से बाहर का था? भूपेंद्र यादव मानते हैं कि राष्ट्रपति का यह फ़ैसला विवादित था।