छठ गीत डालते हैं लोक समाज में गहरे पैठ

संजय कुमार सुमन साहित्यकार

नियम,निष्ठा,सादगी एवं असीम आस्था का पर्व छठ नहाय -खायके साथ शुरू हो गया।आगामी शनिवार को अस्तांचल सूर्य देव को अध्र्य दिया जायेगा । नदियों,जलाशयों,सूर्य,फल,फूल यानि पूरी प्रकृति की आराधनाका अवसर है। छठ और जब यह पर्व लोक समाज में गहरे पैठ है तो तय है कि गीत भी निरर्थक नहीं होंगे। बाजार,चौक-चैराहे और घरों में छठ गीतों से पूरी तरह छठमय हो गया है। विभिन्न गायक एवं गायिका के स्वर में गीतों के कैसेट्स,सीडीज एवं डीवीडी की बिक्री परवान पर है।

व्रत करने वाली महिलाओं का कहना है कि हर कार्य से जुड़े गीत का अपना महत्व है। छठ गीत को सुनकर पता चलता है कि व्रती मायके से ससुराल तक की सुख शांति के लिए छठ माता से प्रार्थना करती है…सभवा में बइठन के बेटा मांगिला, गोड़वा दबन के पतोह ये दीनानाथ, रूनकी झुनकी बेटी मांगिला पढ़ल पंडितवा दामाद ये दीनानाथ…ससुरा में मांगिला अनधन सोनवा नईहर में सहोदर जेठ भाई…।

घटवा के आरी-आरी रोपब केरवा…
शुरुआत होती है छठ घाट की सफाई से। घाट पर उगे घास को काटना, मकड़ी का जाला हटाना और वहां फूल-पौधे लगाने के दौरान ये गीत गाती हैं- घटवा के आरी- आरी रोपब केरवा, बोअब नेबूआ… कोपी-कोपी बोलेले सूरुज देव सुनअ सेवक लोग, मोरे घाटे दुबिया उपज गईले मकरी बसेरा लेले, वितनी से बोलेले सेवक लोग सुनअ ऐ सुरुज देव, रउआ घाटे दुबिया छटाई देहब मकड़ी भगाई देहब..। 

ले ले अईह हो भईया केरा के घवदिया
उसके बाद होती है फल और अन्य सामग्री की खरीदारी। जिसके लिए व्रती अपने भाई से ये गीत गाकर गुहार लगाती हैं, मोरा भईया जायेला महंगा मुंगेर लेले अईह हो भईया गेंहू के मोटरिया, अबकी के गेंहूआ महंग भईले बहिनी, छोड़ी देहू ये बहिनी छठी के बरतियां, नाही छोड़ब हो भईया छठीया बरतियां लेले अईह हो भईया केरा के घवदिया। पटना के हाट पर नरियल, नरियल कीनबे जरूर, हाजीपुर केरवा बेसहबे, अरघ देबे जरूर…। 

मरबो रे सुगवा धनुख से 
व्रत के दिन अर्घ्य से पहले दउरा सजाने के समय व्रती गाती हैं – केरवा जे फरेला घवद से ओहपर सूग्गा मेडराय, मरबो रे सुगवा धनुख से सुगा गिरे मुरछाई…कांच ही बांस के बहंगियां, बहंगी लचकत जाए, होई न बलमजी कहरिया बहंगी घाटे पहुंचाई… चार ही चक्का के मोटरवा, मोटरवा बईठी ससुर जी, पेनी हाली-हाली धोतिआ पियरिया अरघ की बेर भईल…।

चार पहर हम जल-थल सेईला…
व्रत के दिन अर्घ्य देते समय सूर्य देव को प्रसन्न करने के लिए घाट पर बैठी महिलाएं कई गीत गाती हैं। इनमें –सोने के खड़उआ ये दीनानाथ तिकल लिलाल, हाथ सटकुनिया ये दीनानाथ दुअरिया लेले ठाढ़, सबके डलियवा ये दीनानाथ लिहल मंगाय, बाझिन डलियवा ये दीनानाथ पड़ले तवाय…जोड़े-जोड़े सुपवा तोहे चढ़इबो हो, मईया खोल ना हे केवडि़या हे दर्शनवा देहू न…डोमिन बेटी सूप लेले ठाढ़ बा, उग हो सुरुज देव अरघ के बेर, भोरवे में नदिआ नहाइला अदित मनाईला, बाबा फूलवा अछतवा चढ़ाइला सबगुन गाईला हो, बाबा अंगने में मांगिला अंजोर ई मथवा नवाईला हो…गोड़ खड़उआ ये अदितमल सोहे तिलक लिलार, हथवा में सोहे सब रंग बाती तोहे अरघ दिआय…सात ही घोड़वा सुरुज देव दस असवार, बरती दुअरिया छठिअ मईया करीले पुकार…प्रमुख हैं।

सुहाग और संतान की कामना
सुहागिन व्रत के दौरान ये गीत गाकर संतान और सुहाग की कामना करती है- हम तोहसे पुछिले बरतियां करेलू छठ बरतिया से केकरा लागी, हमरो जे बेटवा कवन अइसन बेटवा जे उनके लागी, करीले छठ बरतिया से उनके लागी, अमरूदिया के पात पर उगेले सुरुज देव झांके-झुके, ये करेलू छठ बरतिया से झांके-झुके…।

छठ व्रत के बारे में कहा जाता है कि यह पर्व पुत्र प्राप्ति के लिए किया जाता है लेकिन छठ का गीत बेटियों को भी ईश्वर से मांगता है ‘रूनकी-झुनकी बेटी मांगीला,पढ़ल पंडितवा दामाद ए छठी मईया……..।’ यदि हम इसे आत्मसात करें तो यकीनन मानिए कन्या भ्रूण हत्या रोकने के लिए हमें किसी अभियान की जरूरत की बिल्कुल आवश्यकता नहीं है। इसी तरह एक आधुनिक गीत है जिसमें भाई महंगाई की दुहाई देते हुए कहता है ‘अबकी के गेहुआं महंगी भइले,बहिना छोड़ि देहूं ए बहिना छठी के वरतिया……।’ लेकिन बहन स्पष्ट शब्दों में कहती है कि ‘नाही छोड़ब ए भाईया छइी के वरतिया…….।’ आर्थिक मंदी के इस दौर में भी कोई महिला छठ व्रत छोड़ना नहीं चाहती है। यह निष्ठा और समर्पण का भाव नही है तो क्या है। इतना ही नहीं व्रती घाटों की स्थिति को लेकर भी चितिंत है। अपने भाई से निवेदन करती है कि तुम घाट को सुगम बनवा दो ‘ गंगा माई के ऊॅची रे अतरिया,ऊपर चढ़लों ना जाय……।’

यू तो बाजारों में कई और पारंपरिक छठ गीत गूंज रहे हैं। इन गीतों की सीडी की बिक्री देखते ही बनती है। लोकपर्व छठ के विभिन्न अवसरों पर जैसे प्रसाद बनाते समय, खरना के समय, अर्घ्य देने के लिए जाते हुए, अर्घ्य दान के समय और घाट से घर लौटते समय अनेकों सुमधुर और भक्ति-भाव से पूर्ण लोकगीत गाये जाते हैं।

*”केलवा जे फरेला घवद से, ओह पर सुगा मेड़रा”

      *”काँच ही बाँस के बहंगिया, बहंगी लचकत जाए”

     *”सेविले चरन तोहार हे छठी मइया। महिमा तोहर अपार।”

     *”उगु न सुरुज देव भइलो अरग के बेर।”

     *”निंदिया के मातल सुरुज अँखियो न खोले हे।”

     *”चार कोना के पोखरवा”

     *”हम करेली छठ बरतिया से उनखे लागी।”

इस गीत में एक ऐसे तोते का जिक्र है जो केले के ऐसे ही एक गुच्छे के पास मंडरा रहा है। तोते को डराया जाता है कि अगर तुम इस पर चोंच मारोगे तो तुम्हारी शिकायत भगवान सूर्य से कर दी जाएगी जो तुम्हें नहीं माफ करेंगे, पर फिर भी तोता केले को जूठा कर देता है और सूर्य के कोप का भागी बनता है। पर उसकी भार्या सुगनी अब क्या करे बेचारी? कैसे सहे इस वियोग को? अब तो सूर्यदेव उसकी कोई सहायता नहीं कर सकते, उसने आखिर पूजा की पवित्रता जो नष्ट की है।

*”केरवा जे फरेला घवद से ओह पर सुगा मेड़राय”

*”उ जे खबरी जनइबो अदिक (सूरज) से सुगा देले जुठियाए”

*”उ जे मरबो रे सुगवा धनुक से सुगा गिरे मुरछाये”

*”उ जे सुगनी जे रोये ले वियोग से आदित होइ ना सहाय देव होइ ना सहाय”

काँच ही बाँस के बहँगिया, बहँगी लचकति जाए… बहँगी लचकति जाए… बात जे पुछेले बटोहिया बहँगी केकरा के जाए? बहँगी केकरा के जाए? तू त आन्हर हउवे रे बटोहिया, बहँगी छठी माई के जाए… बहँगी छठी माई के जाए… काँच ही बाँस के बहँगिया, बहँगी लचकति जाए… बहँगी लचकति जाए…

केरवा जे फरेला घवद से ओह पर सुगा मेंड़राय… ओह पर सुगा मेंड़राय… खबरी जनइबो अदित से सुगा देले जूठियाय सुगा देले जूठियाय… ऊ जे मरबो रे सुगवा धनुष से सुगा गिरे मुरछाय… सुगा गिरे मुरछाय… केरवा जे फरेला घवद से ओह पर सुगा मेंड़राय… ओह पर सुगा मेंड़राय…

पटना के घाट पर नारियर नारियर किनबे जरूर… नारियर किनबो जरूर… हाजीपुर से केरवा मँगाई के अरघ देबे जरूर… अरघ देबे जरुर… आदित मनायेब छठ परबिया वर मँगबे जरूर… वर मँगबे जरूर… पटना के घाट पर नारियर नारियर किनबे जरूर… नारियर किनबो जरूर… पाँच पुतर, अन, धन, लछमी, लछमी मँगबे जरूर… लछमी मँगबे जरूर… पान, सुपारी, कचवनिया छठ पूजबे जरूर… छठ पूजबे जरूर… हियरा के करबो रे कंचन वर मँगबे जरूर… वर मँगबे जरूर… पाँच पुतर, अन, धन, लछमी, लछमी मँगबे जरूर… लछमी मँगबे जरूर… पुआ पकवान कचवनिया सूपवा भरबे जरूर… सूपवा भरबे जरूर… फल-फूल भरबे दउरिया सेनूरा टिकबे जरूर… सेनूरा टिकबे जरुर… उहवें जे बाड़ी छठी मईया आदित रिझबे जरूर… आदित रिझबे जरूर… काँच ही बाँस के बहँगिया, बहँगी लचकति जाए… बहँगी लचकति जाए… बात जे पुछेले बटोहिया बहँगी केकरा के जाए? बहँगी केकरा के जाए? तू त आन्हर हउवे रे बटोहिया, बहँगी छठी माई के जाए… बहँगी छठी माई के जाए.. ‘ उग हो सुरज देव अरघक बेर…..’, ‘हमरों पर होईयों सहाय हे छठि मैया…..’, ‘अडनामें पोखरि खुनायल छठि मैया औती आई…..’ ,‘ गेहुमा जे खाय बरती सूगा नहि धनुषा तान……..’ ‘उगहि सूरज गोसइंया हें……’ झूमेला बिहरिया …..’ आदि गीत लोगों की पसंद में शुमार है। गायिका शारदा सिंहा,कल्पना,तृप्ति शाक्या, अनुराधा पौडवाल,पवन सिंह,सुनील छैला बिहारी,मीनू अरोड़ा,देवी,खेसारी लाल  के गाये की धुन सुन कर व्रती सुर में सुर मिलाये पर्व से जुड़े कामों को करती है।