बिहार पृथ्वी दिवस विशेष : ताकि जिन्दगी सूख न जाय…

तेजी से पेड़ का कटाव भी एक तरह का आतंकवाद ही है

 

शीला मंडल

आपकी बात @ कोसी टाइम्स.

“रहिमन पानी रखिये, बिन पानी सब सुन….” जल जीवन है यह तो सभी कहते आये हैं लेकिन आज सवाल है इस जीवन के मूल को बचाया कैसे जाय. जल कई रूप में है लेकिन आज मीठे पीने योग्य पानी के संकट से मानव सभ्यता जूझ रही है. इसलिए जरुरी है हम मीठे पीने योग्य जल के संरक्षण के बारे में सोचे. इसके लिए मेरे मुताबिक कुछ आसान रास्ते हो सकते हैं जिसपर सरकार, इंजिनियर और समाज अमल कर मानव सभ्यता को विनाश से बचा सकता है.

आज शहर हो या गाँव हर जगह नाला निर्माण हो रहा है, लेकिन नाले के डिजाईन में थोड़ा बदलाव कर के हम जल संरक्षण या कहें भूमिगत जल को बढ़ा सकते हैं. जहाँ भी नाला का निर्माण हो नाला मे दोनों तरफ भले कंक्रीट का दिवार हो लेकिन नीचे का हिस्सा जालीदार रहे. जगह-जगह नीचे वाले हिस्से मे जालीदार पाइप ग्राउंड वाटर लेवल तक लगा हो वह पाईप लोहे का हो या सिमेंट का छिद्र होना चाहिए इससे यह लाभ होगा कि नाला का पानी भी आसपास के ग्राउंड वाटर लेवल को सेव करने मे मदद करेगा. अगर नाला नीचे से जालीदार होगा तो पानी धरती सोख लेगी और कचरा भी असानी से निकाला जा सकता है.

अगर इस तरह का नाला हर शहर ,हर गाँव या कहे हर घर में बनेगा तो यह हमें लाभ ही देगा हानि नहीं. एक औंर बात हम अपने घरों के पानी को जल सोखा बनाकर भी बरबाद होने से बचा सकते है. आज नदियाँ भी अपना जल ग्राउंड वाटर को ज्यादा मात्रा मे नहीं दे पा रही हैं उसका कारण नदियो मे शिल्ट का होना, नदियों का उथरा होना है. इसका एक बड़ा कारण फैक्ट्रियों के लाखो टन कचङे का नदियों में जाना भी है. इस बात को कौन समझे शहरों के नाले के कचङे भी नदियाँ को दुषित कर रही है और गैर औद्योगिक इलाके में भी गाद को जमा कर रही है. आज की तिथि में महानगर क्या, नगर क्या छोटे-छोटे क़स्बे की यही स्थिति है.

मेरा मानना है कि हमलोगों को फेक्ट्री का गंदा पानी या कहे मोटा कचरा रहित पानी ही नदियों में गिराना चाहिए. इसके लिए भी एक आसान तरीका को अपनाया जा सकता है. अगर उसके लिए चार-पांच डेम या कहे बड़े तालाब हो कर बारी-बारी से गंदे जल गुजारे तो मोटा कचरा डेम या तलब के तली में बैठता जाएगा और अंतिम मुहाने पर भी पतली जाली लगा कर अधिक से अधिक कचरा को नदी में जाने से रोका जा सकता है. इससे भी हम कुछ हद तक शिल्ट से नदियों को बचा सकते है. आप कहेंगे कि पहला डेम या तालाब को बार बार साफ करना पङेगा क्योंकि वह जल्द ही गंदा से भर जायेगा ये सत्य है .पर आप उस कचङे को निकालकर सुखा ले हो सकता है कि वह कचरा भी कुछ काम आ जाय कभी-कभी बेकार चीज भी काम में आता है. ये न भुले कि पेड़ का सुखा टहनी जो बेकार हो के गिरता है पर वह जलावन के काम आता और कईयो को जीवन देता है .सो ऐसा करने से हो सकता है कि नदियों में जो लाखो टन गंदगी शिल्ट के रूप में जाता औंर
नदियों के गहराई को खोखला बनाता है ये सब कुछ हद तक रूक सकता है.

मानव सभ्यता का विकास नदी-घाटी के किनारे हुई है. बड़े-बड़े शहर नदी किनारे बसे हैं लेकिन आज हम नदी की जमीं को ही अतिक्रमण कर चुके हैं. नदियों के किनारे बसे पर इतना भी करीब न बसे कि उसे ही सीमा में बांध दे नदियों के किनारे कूड़ाकर्कट , गंदगी, झुठी आडम्बर को ढाह दे भगवान का कूड़ा बना कर भगवान को मत मारो. तट से जितने लोग जल ले जाते या वहां पूजा-पाठ को आते हैं . नदियों के किनारे या कहीं भी कम से कम एक पेड़ जरुर लगाएं. चाहे स्थित कोई भी हो. नदियों की हिफाजत के लिए मानव सभ्यता के लिए ये सोच मिल का पत्थर साबित होगा . कृत्रिम शिल्ट से बचाव का यह भी एक मार्ग है ये कृत्रिम शिल्ट हम आप के द्वारा दिया हुआ कोढ है इसे रोकें नहीं तो मरने से कोई नहीं रोक सकता है. जल ही जीवन है. आज के समय में शिल्ट के कारण नदियों का जल सीधे-सीधे सागर में जा रहा है, कम गहराई के कारण या कहे शिल्ट के कारण .

पहले नदियों या बाँध के किनारे बोरा मे माटी या बालु भरकर उसे सुरक्षित किया जाता था पर अब आधुनिक युग में कंक्रीट बिछा दिया जाता हैं जो कि ठीक नहीं है. हर संकट का कारण दो टांग वाला मानुष ही है . शहर हो गांव जिस तेजी से विकास के नाम पर पेड़ कट रहे है वह भी एक तरह का आंतकवाद ही है बस समझने का फेर हैं . इस बात को हम आप जितना जल्दी समझ ले उतना ही अच्छा होगा, नहीं तो प्रथम और द्वितीय विश्व युद्ध बाजार को लेकर हुआ, उसके बाद अभी तेल को लेकर युद्ध होते रहे है लेकिन मेरा मानना है कि तीसरा विश्व युद्ध पानी के लिए ही होगा. इस दुनिया को कोई नहीं बचा सकता, पानी के लिए ही हा हा कार मचेगा. वृक्ष लगाएं-पानी बचाएं-जीवन सुरक्षित करें.