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बिहार में बहार हो….चाहे किसी की सरकार हो !

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himanshu jha

2015 के सुखद अंत के साथ ही नई ऊर्जा के साथ लोगों ने 2016 की नई किरण का का जोरदार स्वागत किया। लोगों ने एक दूसरे को बेहतर भविष्य की कामना लिए शुभकामनाएं दी। देश के सभी क्षेत्रों की भांति मिथिलांचल का एक बड़ा इलाका भी अपनी तरक्की कें इंतजार में टकटकी लगाए बैठा है। यहां के लोगों को भी उम्मीद है कि नये वर्ष में खुद को आगे बढ़ता देख सकेगा।

मिथिला संभवत: भारत का एक बड़ा हिस्सा है, जो बौद्धिक संपदा का धनी होते हुए भी तरक्की के उस मुकाम को पाने से वंचित रह गया है, जिसका कि वह हकदार है। कभी रजवाड़ों में शामिल मिथिला क्षेत्र, जिसके पास वो सभी संपदाएं थीं, जो कि किसी भी क्षेत्र के विकास के लिए जरूरी होती है। आज वही इलाका विकास की इस दौर पिछड़ गया है।

मिथिला का विकास नहीं हो पाने के कई कारण हैं। लेकिन कुछ ऐसी परियोजनाएं हैं, जो आने वाले समय में मिथिला के जीर्णोधार में मददगार साबित होंगी।

मधेपुरा रेलफैक्ट्री से तकरीबन 5 लाख लोगों के लिए खुलेंगे रोजगार के अवसर: अपने राजनीतिक हित को साधने के लिए यूपीए सरकार के समय केंद्र में रेलमंत्री रहे लालू प्रसाद यादव द्वारा मधेपुरा में रेल फैक्ट्री लगाने का घोषणा किया गया था। लेकिन मौजूदा केंद्र सरकार की योजना ‘मेक इन इंडिया’ के तहत इस परियोजना का शुभारंभ किया जाने वाला है। इलेक्ट्रिकल-डीजल इंजन के निर्माण, तकनीकी व भूमि अधिग्रहण पर तकरीबन 20 हजार करोड़ रुपये खर्च होंगे। रेलवे की दोनों परियोजनाएं एफडीआई के जरिए पूरी की जाएंगी। केंद्र सरकार का ‘मेक इन इंडिया’ के तहत बिहार में अबतक का सबसे बड़ा विदेशी निवेश है।

मधेपुरा में बनने से आसपास के तकरीबन लाखों आदमी के रोजीरोटी के मार्ग खुल जाएंगे। एक आकलन है कि इस योजना से 5 लाख लोगों की आमदनी बढ़ जाएगी, क्योंकि रेलवे के इस बड़े प्रोजेक्ट से उसके आसपास के इलाकों का भी विकास होगा।

जाहिर सी बात है, रेलवे का यह प्रोजेक्ट अपने साथ कई तरह के व्यापार को जन्म देगा। जैसे कारखाना में काम करने वाले कामगारों और इंजीनियरों की आवश्यक्ता की पूर्ति के लिए एक बाजार, उनके बच्चों के लिए स्कूल इत्यादि। मधेपुरा से कुशेश्वर स्थान जो कि महज 35 से 40 किमी की दूरी पर है, जो कि एक पिछड़ा इलाका माना जाता है। ऐसे में उस इलाके के लोगों के लिए बड़ी उम्मीद लेकर आएगा यह कारखाना।

भपटियाही रेलपुल चालू होने से दरभंगा से गुजर सकती है राजधानी जैसी ट्रेनें: 1934 में आए भूकंप में निर्मली भपटियाही पुल को ध्वस्त कर दिया था, जिसके बाद से मिथिला दो भागों में बंट गई थी। वजह साफ था पुल के ध्वस्त होने के साथ ही दरभंगा, मधुबनी के लोगों का सुपौल, सहरसा, मधेपुरा, पूर्णियां और अररिया के लोगों के साथ संपर्क टूट गया, क्योंकि कोसी पर बने निर्मली-भपटियाही पुल ही था, जो कि दोनों तरफ के लोगों के साथ जोड़ने का काम करता था।

सन् 2003 में अटल बिहारी वाजपेयी ने ध्वस्त हो चुके इस पुल के जगह एक महासेतू बनाने की आधारशिला रखी। ज्ञात हो कि सड़क पुल की शुरुआत 2012 में हो चुकी है, जिससे दरभंगा से सुपौल की दूरी कुछ ही घंटो में तय की जा सकती है। पहले दरभंगा से सुपौल जाने में 245 किमी का लंबी दूरी तय करनी होती थी।

इसके साथ ही उम्मीद की जा रही है कि सड़क पुल के बगल में बनने वाली रेलपुल पर भी कुछ ही समय में आवागमन शुरू हो जाएंगे, जिससे की दरभंगा के आर्थिक विकास की अपार संभावनाएं जिंदा हो गई है। वजह साफ है, रेलपुल की शुरुआत के साथ ही दरभंगा निर्मली होते हुए नॉर्थ ईस्ट राज्यों को जाने वाली ट्रेनें दरभंगा से होकर गुजरने लगेगी, जिसमें डिबरूगढ़ को जाने वाली राजधानी जैसे ट्रेन भी शामिल है।

दरभंगा होकर राजधानी के परिचालन की शुरुआत होने से ना सिर्फ दिल्ली से दरभंगा आने में कम समय लगेंगे बल्कि, दिल्ली से नार्थ-ईस्ट के राज्यों की दूरी में भी तकरीबन 200 किमी की कमी आ जाएगी। इसके अलावा दरभंगा, मधुबनी में कारोबार बढ़ने की संभावनाएं अधिक हो जाएंगी। क्योंकि लोगों का आवागमन अधिक हो जाएगा इसके बाद।

हवाई अड्डे से लग जाएगा चार चांद:– आज जब हम देश के तमाम पुराने रजवाड़ों से मिथिला की तुलना करने बैठते हैं, तो मिथिला को उसमें सबसे पीछे खड़ा देखते हैं, जिसका सबसे बड़ा कारण है व्यापार में पिछड़ते जाना। 1950 के दशक में दरभंगा महाराज के पास अमेरिकी एयरफोर्स से खरीदे गई 4 एयरक्राफ्ट थे। आज वही दरभंगा के पास एयरपोर्ट होते हुए भी हवाई जहाज का परिचालन ठप पड़ा है। अगर दरभंगा में मौजूद एयरपोर्ट को चालू कर दिया जाए तो मिथिला के विकास में चार-चांद लग जाएंगे, क्योंकि दरभंगा, मधुबनी जो कि दिल्ली, मुम्बई जैसे महानगरों से 20 से 30 घंटे की दूरी पर है। यही वजह है कि कारोबारी यहां आना नहीं चाहते हैं। जयपुर जैसे शहरों की तरह अगर दरभंगा की दूरी भी चंद घंटो में तय की जा सकती तो आज मिथिलांचल का इलाका अपने स्वर्णिंम युग में जी रहा होता।

पशुपालन विश्वविद्यालय की जगह पूसा में हो तो मिलेगा फायदा: दिसंबर 2014 में नीतीश कुमार के मुख्यमंत्री रहते हुए बिहार सरकार ने बिहार में पहला पशुपालन विश्वविद्यालय खोलने का निर्णय लिया, जो कि पटना के वेटनरी कॉलेज में खोला जाएगा। अगर यही विश्वविद्यालय बिहार के कृषि प्रधान जिला समस्तीपुर में खोल दिया जाए, तो किसानों के साथ-साथ मिथिला के विकास में भी मददगार साबित हो सकेगा। ज्ञात हो कि समस्तीपुर जिले के पूसा प्रखंड में वर्षों से कृषि विश्वविद्यालय का संचालन किया जा रहा है। ऐसे में अगर पशुपालन विश्वविद्यालय भी समस्तीपुर में खुल जाए तो बेसक मिथिला क्षेत्र जिसकी आमदनी अधिकांश कृषि पर निर्भर करता है, उसके किसानों के लिए हर्ष का विषय होगा।

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इतना ही नहीं दरभंगा जो कि मछली-मखान के लिए प्रसिद्ध है, जहां की तलाबें सूख रहे हैं, उसके जिर्णोधार में भी मददगार साबित होगा। दरभंगा में आज के समय में इतनी तलाबें सूखे पड़े हैं, अगर उसका जिर्णोधार हो जाए तो एक दरभंगा पूरे बिहार के खाने लायक मछली का उत्पादन कर सकता है।

डीएमसीएच के साथ ही सहरसा में होनी चाहिए एम्स की स्थापना: मैथिली भाषी लोगों के लिए आज उसके पास सबसे बड़ा सरकारी अस्पताल दरभंगास्थित डीएमसीएच ही है।, जिसकी परिस्थिति दिन-प्रतिदिन बद से बदतर होती जा रही है। कोशी के इलाकों में आज भी कई तरह की बीमारी वर्षों से चली आ रही है। एक तो लोगों का आमदनी कम है, ऐसे में बीमारी उसकी कमर तोड़ देती है। इतने बड़े इलाके में सिर्फ एक बड़े अस्पताल से परिस्थिति को सुधारना बेमानी लगती है। इसके लिए केंद्र सरकार को सहरसा में एक एम्स खोलने पर विचार करनी चाहिए, जिससे कि वहां के लोगों को बेहतर और सस्ते इलाज के लिए दरभंगा, पटना या फिरा दिल्ली के चक्कर लगाने से राहत मिले।

मंडन मिश्र की पत्नी भारती के नाम पर खुले महिला विश्वविद्यालय:
– नीतीश कुमार ने बिहार के पंचायती चुनावों में महिलाओं को 50 प्रतिशत आरक्षण देकर महिलाओं के सशक्तीकरण के लिए एक ठोस कदम उठाया था। इसका मकसद साफ था महिलाओं की राजनीति में भागिदारी पर बल देना। लेकिन इससे महिलाओं की परिस्थितियों में वैसा सुधार नहीं हो सका, जिसका की अंदाजा लगाया जाता था। अगर आप बिहार के प्रखंड मुख्यालयों में देखें तो अमूनन पुरुषों की प्रधानता आज भी कायम है।

महिलाओं को बस चेहरा के तौर पर ही पेश किया जा रहा है, बाकी सत्ता उसके पति, पुत्र या अन्य पुरुष सहयोगियों के हाथ में ही रहता है। मिथिलांचल में आज भी पुरुष प्रधान समाज की ही झलकियां दिखाई देती है। आजादी के 67 साल बाद भी महिलाओं की परिस्थिति में उतना सुधार नहीं हुआ है, जिसकी गुंजाइश है। मिथिला वही क्षेत्र हैं जहां महिषी में आचार्य मंडन मिश्र की पत्नी भारती ने पहली बार में आदि शंकराचार्य को शास्त्रार्थ में हराया था, बाद में फिर आदि शंकराचार्य ने भारती को हराया था। आज सरकार को मिथिला के महिलाओं के विकास के लिए भारती के नाम पर एक महिला विश्वविद्यालय खोलने के बारे में सोचनी चाहिए।

बीते विधानसभा चुनाव में अगर सिर्फ हम दरभंगा प्रमंडल की चर्चा करें, तो 30 में से 26 विधायक सत्तारूढ़ गठबंधन के विधायक हैं। इतना ही नहीं मौजूदा केबिनेट में 4 मंत्री दरभंगा प्रमंडल से आते हैं, जिसमें नीतीश सरकार के वित्त मंत्री अब्दुल बारी सिद्दिकी, राजस्व मंत्री मदन मोहन झा के अलावा मदन सहनी और उजियारपुर के विधायक महेश्वर हजारी भी सरकार में मंत्री हैं। इसके साथ ही 7 सासंद ऐसे हैं जो केंद्र की सत्तारूढ़ गठबंधन के अंग हैं। ऐसे में अगर मिथिला का विकास हाशिये पर चला जाए तो फिर तो इन सियासयदां को शक के नजर से देखना ही होगा।
(ये लेखक के निजी विचार हैं.इससे कोसी टाइम्स का सहमत/असहमत होना जरूरी नहीं है.)

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